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________________ कहीन धनहीन हूँ, किमाहीन मिनदेव । जमा कर मुझेबबरम को सेव॥ माने बोबो हेवाण, पूजे भक्ति प्रमाक। है या मार कर, अपने-अपने पाच॥' am-m साबित पुष्ों को तीन बार में कुल नौ पुष्प स्थापना पात्र में पाना चाहिए। भी मिनबर की माशिका, सीज शोश बढ़ाय। भव-मब के पातक कटे, दुःख दूर हो जाय ॥ तीन बार मावि बेनी चाहिए और उन सभी पुष्पों को धूप दान में भस्म कर नाहिसमा स्मापनापात्र में बने स्वास्तिक चिहन को जल से ने TREसाकर देना चाहिए। परिमा-दी की परिक्रमा कम से कम तीन बार अवश्य देना चाहिए प्रा पतितपावन में पावन, परन माबो सरन जी। पो विजय माप, निहार स्वामी, मे जामन भरन को॥ तुम ना पिछाया मान मान्या, देव विविध प्रकार जी। या पुदि सेती निज न जाग्यो, भ्रम गिण्यो हितकार जी॥' परिकमा समाप्त होने के साथ ही तीर्थकर को एक बार नमस्कार करके मंदिर से बाहर होना चाहिए। १. बन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता ७, पृष्ठ ६१। २. जैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ ६१ ३. पाविनवाणी संग्रह, पं. पन्नालाल बाकलीवाल, मदनगंज, किशनगढ़, १९५६६०, पृष्ठ ४१-४२॥
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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