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________________ ब पहप शीतल पानी भासमय पूषित तुरराव ॥ विमल मनंत धर्म बस उपल, शातिर मस्ति गाय। मुनि मुक्त गमि मि का र 'जल-फल नाठों शुचितार, साको काँ। तुमको अरपों ममतार, भक्तरि । चोचीतों भी शिन, यही पर जबत हरत अवकंद, पाबत मोकामनाही ॥' ॐ ह्रीं श्री वृषमाविषीरान्तेभ्यो महासन निर्णयामीति स्वाहा। (चौथे क्रमांक पर बने चनाकार पर गर्व वाला है।) नेमिनाय नियूना बाइसवें तीर्थकर श्री मेनिनाव निपूजा करने का है।' यदि विराजमान प्रम-वेविका पर तीर्थकर आदिलायाराममान है तो पुजारी प्रत्येक तीर्थकर की पूजा करने का म ह । पति वहाँ पर महावीर स्वामी की स्थापना है तो फिर की पूजा बाद में नहीं करनी चाहिए। इन तीकरों की स्थापना MPाना) में ही की जाती है किन्तु विराजमान तीकर की स्थापना मना नहीं की जाती। उनकी स्थापना चन्द्राकार मांक ५ पर ही सम्मान की जाती है। भी पारवनाथ पूजा-इसके उपरान्त 'श्री'पामा विनाकारली चाहिए। १. जैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं. ६२, नलिनी के रोग, कलकत्ता-७, पृष्ठ ८०। २. जैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं. ६२, नलिनी रेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ ८१ ३. मनरंगलाल, श्री नेमिनाथ पूषा, भींगीत संस्थाका सम्पादक-पं० शिखरचन्द्र जैन, जवाहरगंक, बसपुर..., वस्त १९५० ई., पृष्ठ १५३-१५६ ।। ४. मनरंगलाल, श्री पार्श्वनाथ जिन पूजा, वही, पृष्ठ Awrter
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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