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________________ (१२) (२) अकृत्रिम त्यालयों के मर्ष हत्याकृत्रिम चार-पाल्पनिसमान् नित्वं विलोमासान् । की पावन ध्यंतरान पतिवरान् स्वानरामासान् । समन्वागत-पुष्प-नाम-परका सहीपः -- पनीरमुबंजामि सततं दुष्कर्मनाशांतये ॥१॥ ॐहीं कुशिमारुशिमचत्यालय सम्बधि बिन विवेन्यो मात (परिका की जोर हितीयांक बनाकार मंडित चिन्ह पर बढ़ाये सा कि कलक कमांक २ पर लिखा हुआ है।) नौ बार ममोकार मंत्र का पाठकर पुष्पांजलि क्षेपण करना चाहिए। सिवपूजा अर्ष अध्यापोरवतं सबिन्दुसपर महास्वरचित पूरित-विग्नताम्युनर तत्सन्धि-सत्यापितम् अन्तः पत्र-तटेडवनाहतयतं ह्रींकार-संवेष्ठित देवं व्ययाति यः स मुक्ति-सुभयो बीम-कण्ठीरुः। 'गमा उपयो मतगणः संग बरं चन्दन, पुष्पोध विमलं सपातच रम्यं पर बोषकम् । पूर्व गवतं स्वामि विविध घळ फलं लगे, सिवानां पुगपरताय विमल सेनोतरं वांछितम्।' ॐही सिट बाधिपलपे सिर परमेष्ठिने मर्ष निर्वपानीस महा। तीसरे कम के बने धम्हाकार पर भर्ष क्षेपण करना चाहिए। चौबीसी तीर्थकर पूजा वृक्षम अमित संभव मभिनंदन, सुमतिपदमसुपास जिमराम। १. जैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी से रोट, कलकत्ता-७, पृष्ठ ३६-३८ । २. भान पीठ पूजांजलि, अयोध्या प्रसाद गोयलीय, मंत्री, भारतीय मानपीठ दुर्गाकुण्ड, रोड, बनारस, प्रथम संस्करण १९५७ ई०, पृष्ठ ३. वही, पृष्ठ ७५।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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