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________________ (७०) है। उसके राज्यकालके दो दानपत्र सं० १०७६ और १०७६ के मिले हैं। प्राचार्य प्रभाचन्द्रने तस्वार्थवृत्तिके विषम-पदोंका विवरणात्मक टिप्पण लिखा है उसके प्रारंभमें अमितगतिके संस्कृत पंचसंग्रहका निम्न मस्कृत पथ उद्धृत किया है : वर्गः शक्ति ममूहोणोरणूनां वर्गणोदिता । वर्गणानां समूहस्तु स्पर्धक स्पर्धकापहैः ।। अमिनगतिने अपना यह पंचसंग्रह मसूतिकापुरमें, जो वर्तमान में 'ममीद बिलौदा' ग्रामके नामसे प्रसिद्ध है। वि० सं० १०७३ में बनाकर समाप्त किया है। अमितगति धाराधिप मुजकी मभाके रन भी थे। इससे भी स्पष्ट है कि प्रभाचन्द्रने अपना यह टिप्पण वि० सं० १०७३ के बाद बनाया है, कितने बाद बनाया गया है यह बात अभी विचारणीय है । यहां एक बात और नोट कर देने की है और वह यह कि 'न्याय विनिश्चय विवरण के कर्ता प्राचार्य वादिराजने अपना पार्श्वपुराण शक संवत् १४७ (वि० सं० १०८२ में बनाकर समाप्त किया है, यदि राजा भोजके प्रारंभिककालमें प्रभाचंद्रने अपना प्रमेयकमलमानण्ड बनाया होता तो वादिराज उसका उल्लेख अवश्य ही करते। पर नहीं किया, इससे यह ज्ञात होता है कि उस समय तक प्रमेयकमलमार्तण्डकी रचना नहीं हुई थी। हां, सुदर्शन चरित्रके कर्ता मुनिनयनंदीने, जो माणिक्यनंदीके प्रथम विद्या शिष्य थे और प्रभाचंद्रके समकालीन गुरुभाई भी थे, अपना सुदर्शनचरित वि० सं० ११००में बनाकर समाप्त किया था और उसके बाद मकल विधि विधान नामका एक काव्य पथ भी बनाया था जिसमें पूर्ववर्ती और समकालीन अनेक विद्वानोंका नामोल्लेख करते हुए प्रभाचंदका भी नामोल्लेख किया है पर उसमें उनके प्रमेयकमलमार्तण्डका कोई उल्लेख नहीं है । इमसे माफ जाना जाता है कि प्रमेयकमलमार्तण्डकी रचना सं० ५१०० या उसके एक दो वर्ष बाद हुई है। प्रभाचंद्रने जब प्रमेयकमल
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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