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________________ ( ६६ ) रचनाएँ की हैं । धारामें उस समय जैन विद्वानोंके कितने ही संघ विद्यमान थे, खासकर माथुरसंघ और लाडवागड़ संघके अनेक मुनियोंका वह विहार-स्थल बना हुआ था । दशवीं शताब्दीसे १३वीं शताब्दि तक धारामें जैनधर्मका खूब उत्कर्ष रहा है। उसके बाद वहाँ मुसलमानोंका शासन हो जानेसे हिंदू संस्कृतिक साथ जैन संस्कृतिको भी विशेष हानि उठानी पडी । पुरातत्वकी दृष्टिसे धारा और उसके आस-पासके स्थान श्राज भी महत्व के हैं और वहाँ के भूगर्भ में महत्व की पुरातत्त्व सामग्री दबी पडी है । आचार्य प्रभाचन्द्र ने इसी धारा नगरीमें रहते हुए विशाल दार्शनिक terri निर्माणके साथ अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है । प्रमेयकमलमार्तण्ड (परीक्षामुख टीका) नामक विशाल दार्शनिक ग्रन्थ सुप्रसिद्ध राजा भोज राज्यकालमें रचा गया है और न्याय कुमुदचन्द्र (लघीयस्त्रय टीका) आराधना गद्य कथाकोश, पुष्पदन्तके महापुराण (आदि पुराण उत्तरपुराण) पर टिप्पण ग्रन्थ, समाधितंत्र टीका ये सब ग्रन्थ राजा जयसिंहदेवके राज्यकालमें रचे गए हैं। शेष ग्रन्थ प्रवचन- सरोज-भास्कर, पंचास्तिकायप्रदीप श्रात्मानुशासन तिलक, क्रियाकलापटीका, रत्नकरण्ड श्रावकाचारटीका, वृहत्स्वयंभू स्तोत्र टीका, शब्दाम्भोजभास्कर और तत्त्वार्थवृत्तिपदविवरण ये सब ग्रन्थ कब और किसके राज्यकालमें रचे गए है यह कुछ ज्ञात नहीं होता । बहुत सम्भव है कि ये सब ग्रन्थ उक्त ग्रन्थोंके बाद ही बनाये गए हों । अथवा उनमें कोई ग्रन्थ उनसे पूर्व भी रचे हुए हो सकते हैं । अब रही समयकी बात, ऊपर यह बतलाया जा चुका है कि प्रभाचन्द्र प्रमेयकमलमार्तण्डको राजाभोजके राज्यकाल में बनाया है । राजा भोजका राज्यकाल वि० सं० १०७० से १११० तकका बतलाया जाता मूडबिद्रीके मटकी समाधितंत्र प्रथकी प्रतिमें पुष्पिका वाक्य निम्न प्रकार पाया जाता है --' इति श्रीजयसिहदेवराज्ये श्रीमद्वारानिवासिना परापरपरमेष्टि प्रणामोपार्जितामल पुण्यनिराकृताखिलमलकलंकेन श्रीमत्प्रभाचन्द्र पंडितेन समाधिशतक टीका कृतेति ॥"
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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