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________________ ( ५६ ) उल्लेख निम्न वाक्योंमें किया है--- "कमलकित्ति उत्तम खमधारउ, भव्वह भव अम्भोणिहितारउ । तम्स पट्ट करणयट्टि परिट्टिउ, सिरिसुहचन्द सु-तवडक कंट्टिउ ।” - आदि प्रशस्ति "जिसुत्तत्थ अलहन्तएण सिरिकमलकित्तिपयसेवरण ।” सिरिकंजकित्ति पट्टवरे, तच्चत्थ सत्यभासण - दिसु । उइण मिच्छत्ततमोहणासु, सुहचन्द भडारज सुजस वासु ।” अन्तिम प्रशस्ति इन वाक्योंमें उल्लिखित कमलकीर्ति कनकाद्रि (सोनागिर ) के पट्ट गुरु थे, और कनकादिके पट्ट पर भ० शुभचन्द्र प्रतिष्ठित हुए थे 1 यदि इन दोनों कमलकीर्ति नामके विद्वानोंका सामंजस्य बैठ सके, तो समय निर्णय में सहायता मिल सकती है, परन्तु इन दोनों कमलकीर्तियों की गुरु परम्परा एक नहीं जान पड़ती है प्रथम कमलकीर्ति श्रमलकीर्तिक शिष्य हैं। और दूसरे कमलकीर्तिक पद पर शुभचन्द्र प्रतिष्ठित थे हुए 1 इनका समय १५वीं शताब्दीका अन्तिम चरण और १६वीं का पूर्वाद्ध है । प्रथमका समय क्या है ? यह ग्रन्थ प्रशस्ति परसे ज्ञात नहीं होता । हो सकता है कि दोनों कमलकीर्ति भिन्न भिन्न समयवर्ती विद्वान हों पर वे १२वीं ११वीं शताब्दीसे पूर्वक विद्वान नहीं ज्ञात होते, संभव है व पूर्ववत भी रहे हों, यह विचारणीय है । rai प्रशस्ति 'यशोधर महाकाव्य-पंजिका' की है। जिसके कर्ता पं० श्रीदेव हैं। श्रीदेवने पंजिका में अपनी कोई गुरु परम्परा नहीं दी और न पंजिकाका कोई रचना समय ही दिया है इस पंजिकाका समय निश्चित करना कठिन है। पंजिकाकी यह प्रति स० १५३६ की लिखी हुई हैं, जो फाल्गुन सुदी ८ रविवार के दिन लिखाकर मूलसंधी मुनि रन्नकीर्तिके उपदेश एक खंडेलवाल कुटुम्बकी ओरसे ब्रह्म होलाको प्रदान की गई है । इससे इतना तो स्पष्ट है कि उक्त पंजिका मं० १५३३ के बादकी कृति न होकर उससे पहले ही रची गई है। कितने पहले रची गई इसकी
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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