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________________ पूर्वावधि शक सं० ८८१ (वि० सं० १०१६) के बाद किसी समय होना चाहिये, जो कि उक काव्यका रचनाकाल है। ८६वीं प्रशस्ति पुरुषार्थानुशासन' नामक ग्रन्थ की है जिसके कर्ता कवि गोविन्द हैं जो पद्मश्री मातासे उत्पन्न हींगाके सुपुत्र थे। इनकी जाति अग्रवाल और गोत्र गर्ग था। यह जिनशासनके भक्र थे। ग्रन्थ में उल्लेख है कि माथुर कायस्थोंके वंशमें खेतल हुआ, जो बन्धुलोक रूपी ताराग्गणोंसे चन्द्रमाके समान प्रकाशमान था। खेतलके रतिपाल नामका पुत्र हुआ, रतिपाल के गदाधर और गदाधर के अमरसिंह और अमरसिंह के लपमण पुत्र हुश्रा, जिसकी बहुत प्रशंसा की गई है । श्रमरमिह मुहम्मद बादशाहके द्वारा अधिकारियों में सम्मलित होकर प्रधानताको प्राप्त करके भी गर्वको प्राप्त नहीं हए थे इनकी इस कायस्थ आति में अनेक विद्वान हुए हैं जिन्होंने जैनधर्मको अपनाकर अपना कल्याण किया है। कितने ही अच्छे कवि हुए हैं, जिनकी सुन्दर रचनाओं से साहित्य विभूषित है। कितने ही लेखक भी हुए हैं। कवि ने यह ग्रन्थ उक्र लक्ष्मण के ही नामांकित किया है । क्योंकि वह इन्हीं की प्रेरणादि को पाकर उसके बनाने में समर्थ हुए हैं। प्रन्थ प्रशस्तिमें कहीं पर भी रचनाकाल दिया हुश्रा नहीं है, जिससे कविका निश्चित समय दिया जा सकता। हो, प्रशस्तिमें अपनेसे पूर्व वती कवियोंका स्मरण जरूर किया गया है जिनमें समन्तभद्र, भट्ट अकलंक, पूज्यपाद, जिनसेन, रविषेण, गुणभद्र, बहकेर, शिवकोटि, कुन्दकुन्दाचार्य, उमा स्वाति, सोमदेव, वीरनन्दी, धनंजय, असग, हरिचन्द जयसेन, और अमितगति १ ये नाम उल्लेखनीय हैं। __ इन नामोंमें हरिश्चन्द्र और जयसेन ११वीं और १३वीं शताब्दीक विद्वान् है अता गोविन्द कवि १३वीं शताब्दीके विद्वान तो नहीं हैं । किन्तु इस प्रशस्तिमें मलयकीर्ति और कमलकीर्ति नामक प्राचार्योका भी उल्लेख १-देखो बम्बई प्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक, पृ० १२०
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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