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________________ ( २१ ) rest हैं या अन्य कोई दूसरे पद्मनन्दी, यह कुछ ज्ञात नहीं होता; क्योंकि उनमें भट्टारक प्रभाचन्द्रका उल्लेख नहीं है । पद्मनन्दिमुनि द्वारा रचित 'चद्ध' मानचरित्र' नामका एक संस्कृत ग्रन्थ जो सं० १५२२ फाल्गुण वदि ७ मीका लिखा हुआ गोपीपुरा सूरतके शास्त्र भंडार, और ईडरके शास्त्र भंडारमें विद्यमान है। बहुत सम्भव है कि वह इन्हीं पद्मनन्दीके द्वारा रचा गया हो। ग्रन्थ प्राप्त होने पर उसके सम्बन्धमें विशेष प्रकाश डालनेका यत्न किया जायगा । अभी हाल में टोडा नगर में जमीनमेंसे २६ दिगम्बर जैन मूर्तियाँ निकली हैं, जिन्हें संवत् १४०० में प्रभाचन्द्रके शिष्य भ० पद्मनन्दीके शिष्य भ० विशालकीर्तिके उपदेशसे, खंडेलवाल जातिके गंगेलवाल गोत्रीय किसी श्रावक प्रतिष्ठित कराया था। इससे स्पष्ट है कि भ० पद्मनन्दी वि० सं० १४७० से पूर्ववर्ती हैं। और उनकी पूर्वीय सीमा सं० १३७५ है । अनेक पालियों में उक्त पद्मनन्दीका पट्ट पर प्रतिष्ठित होनेका समय सं० १३७५ दिया हुआ है । वह प्रायः ठीक जान पड़ता है । १५वीं प्रशस्ति महापुराणकी संस्कृत टीका की है जो श्राचार्य जिनसेन और उनके शिष्य गुणभद्राचार्यको कृति है । महापुराणके दो भाग हैं, जो आदिपुराण और उत्तरपुराणके नामसे प्रसिद्ध हैं । महापुराणको इस संस्कृत टीका कर्ता भ० ललितकीर्ति हैं जो काष्टासंघके माथुरगच्छ और पुष्कर भट्टारक जगत्कीर्तिके शिष्य थे । यह दिल्ली की भट्टारकीय गडीके पधर थे, बड़े ही विद्वान और प्रभावशाली थे । मन्त्र-तन्त्रादि कार्योंमें भी निपुण थे | आपके समय में दिल्लीकी भट्टारकीय गद्दीका महत्व लोकमें ख्यापित था । श्रापके पास अलाउद्दीन खिलजी द्वारा प्रदत्त वे बत्तीस फर्मान और फीरोजशाह तुगलक द्वारा प्रदत्त भट्टारकोंको ३२ उपाधियां सुरक्षित थीं, पर आज उनका पता नहीं चलता है, कि वे कहाँ और किसके पास हैं । आप देहलीसे कभी-कभी फतेहपुर भी आया जाया करते थे । * कहा जाता है कि उम्र फर्मानोंकी कापियाँ नागौर और कोल्हापुरके भट्टारकी भण्डारों में मौजूद हैं। नागौरके भट्टारक देवेन्द्रकोर्तिजीने नागौर
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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