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________________ ( २० ) पंचमी दिन देहली बादशाह पेरोजशाहके राज्यकालमें + लिखी गई है । मुनि पद्मनंदिने अपने श्रावकाचारसारोद्धार की प्रशस्ति में भट्टारक रत्नकीर्तिका भी आदरपूर्वक उल्लेख किया है । प्रशस्तिमें उन श्रावकाचारके निर्माण में प्रेरक लंबकंचुक (लमेचू ) कुलान्वयी साहू वासाधरके पितामह 'गोकर्ण' थे, जिन्होंने 'सूपकारसार' नामके ग्रन्थकी रचना भी की थी । इन्हीं गोकर्णके पुत्र सोमदेव हुए। इनकी धर्मपत्नीका नाम 'प्रेमा' था, उससे सात पुत्र उत्पन्न हुए थे । वासाधर, हरिराज, प्रल्हाद, महाराज, भवराज, रतन और सतनाख्य । इनमें साहू वासाधरकी प्रार्थनासे ही उक्त ग्रन्थ रचा गया है । I प्रस्तुत पद्मनन्दीने इस श्रावकाचारके अतिरिक्त और किन किन ग्रन्थोंकी रचना की है यह विषय ग्रन्थ भण्डारोंके श्रन्वेषणसे सम्बन्ध रखता है, इस सम्बन्धमें मेरा अन्वेषण कार्य चालू है । श्रनेकान्तमें पद्मनन्दी मुनिके नामसे कई स्तोत्र प्रकाशित हुए हैं । १ वीरागस्तोत्र २ शान्ति जिनस्तोत्र ३ रावणपार्श्वनाथस्तोत्र, ४ जीरावलीपार्श्वनाथस्तवन, ५ और भावनापद्धति ( भावना चतुस्त्रिंशतिका ) । इन ५ स्तोत्रोंमेंसे नं० ४ श्रौर ५ के रचियता तो प्रस्तुत पद्मनन्दी हैं अवशिष्ठ तीन स्तोत्रोंके कर्ता उक्त + पेरो या फीरोजशाह तुगलक सन् १३५१ में दिल्लीके तख़्त पर बैठा था, उसने सन् १३५१ से सन् १३७८ तक अर्थात् वि० संवत् १४०८ से संवत् १४४५ तक राज्य किया है। संवत् १४४५ में उसकी मृत्यु हुई थी । इससे स्पष्ट है कि भट्टारक रत्नकीर्तिके पट्ट पर प्रतिष्ठित होने वाले प्रभाचन्द्र सं० १४१६ में उक्त पट्टपर मौजूद थे। वे उस पर कब प्रतिष्ठित हुए, यह अभी विचारणीय है । * 'सूपकारसार' नामका यह ग्रन्थ अभी तक प्राप्त नहीं हुआ । इस ग्रन्थका अन्वेषण होना चाहिए । सम्भव है वह किसी ग्रन्थ भण्डारकी काल कोठरी में अपने शेष जीवनको घड़ियाँ व्यतीत कर रहा हो, और खोज करनेसे वह प्राप्त हो जाय ।
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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