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________________ मुनिसंस्था के नियम [१९९ समिति का रूप है वह द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के बदल जाने से बनावश्यक है । जो सुधरा हुआ रूप ऊपर बताया गया है वह उत्तर गुणों में रखने लायक है, मल-गुणों में नहीं। आदाननिक्षेपण समिति-प्रत्येक वस्तु को यत्नपूर्वक, हिंसा को बचाते हुए उठाना-रखना-आदाननिक्षेपण समिति है । इसको भी भावना या उत्तर-गुणों में रख सकते हैं, इसे मूल गुण नहीं बनाया जा सकता । इसके अतिरिक्त हिंसा-अहिंसा का विचार भी सब जगह एक सरीखा नहीं किया जा सकता । मान लो, एक आदमी मकान बना रहा है-ऐसी अवस्था में वह छोटे छोटे कीड़ों की रक्षा का विचार उतना नहीं कर सकता जितना कि पुस्तक के उठाने रखेन में कर सकता है। इसी प्रकार अन्यत्र भी समझना चाहिये। प्रतिष्ठापना समिति-वनस्पति तथा त्रस-जीवों से रहित शुद्ध भूमि में मल-मूत्र आदि का क्षेपण करना प्रतिष्ठापना समिति है। यह भी भावना-रूप में ही रखी जा सकती है, व्रत-रूप में नहीं। आजकल नगरों की रचना ऐसी है कि वहाँ जंगल में या छोटे छोटे गाँवों में रहने के नियम नहीं पाले जा सकते । ट्रेन तथा जहाज़ में यात्रा करने पर भी इस विषय में विशेष रत्न नहीं किया जा सकता । समाज-सेवा के लिये नगर में रहने, रेल और जहाज़ में यात्रा करने की बहुत बार, आवश्यकता होती है, इसलिये साधु को इनसे विरत करना उचित नहीं है । इसलिये प्रतिष्ठापना समिति का अर्थ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार करना होगा, तथा इसे मलगुणों में तो रख ही नहीं सकते।
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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