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________________ अपरिग्रह] [१५१ पैसा पैदा करने के लिये उनके व्यापार को नष्ट कर * दिया जाता है । वे दूसरों के साथ व्यापार न कर सकें इस प्रकार की को ज़मान रखने का हक ही न रहा; जिससे वे गोरे पुँजीपतियों की गुलामी करें । इतने पर भी जब उद्देश सिद्ध न हुआ तो उन पर मुंड कर लगा दिया, और जो मजदूरी न करे उसपर दुना कर लगाया गया । इतने पर भी जब काम न चला तो म्जर जबर्दस्ती पकड़े जाने लगे, और अगर वे भाग जाते तो उन्हें जेल भेज दिया जाता । तब कैदी की हैमियत से उनसे मुफ्त में ही काम लिया जाता । इससे दुःखी होकर जब उनने उपद्रव किण तो करता से दबाया गया । नेताओं को गली मार दी गई ग कैद कर लिया गया । भीड़ पर गोलियां चला कर अनेक स्त्रियों को भी सदा के लिये सुला दिया गया । ये तो थोड़े से नमूने हैं, परन्तु इस प्रकार के अत्याचार असंख्य हैं। आफ्रिका के अत्याचार असंख्य हैं । आफ्रिका के हब्सियों की गुलामी प्रथा के अत्याचार सुननेवालों के रोंगटे खड़े कर देते हैं। अमेरिका में रेडडियनों का पशुओं की तरह शिकार किया गया था । रेडईडियनों की सभ्यता यूरोपियनों से कुछ कम नहीं थी। उन के गाँव के गाँव नष्ट किये जाते थे। मतलब यह कि इन उपनिवेशों का जन्म लाखों निर्दोष और पवित्र आदमियों के रक्तप्रवाह में हुआ है। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत के कारीगरों पर जो अस्याचार किये हैं और विविध उपायों से भारत के न्यापार को जिस
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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