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________________ १३.] [जैन-धर्म-मीमांसा लिखित उपाय काम में लेना चाहिये । क-समाज का प्रत्येक पुरुष और स्त्री विवाहित हो इस लिये विवाह की पूर्ण स्वतन्त्रता होना चाहिये, इसमें जाति-पाँति का तथा विधवा-कुमारी का विचार न रक्खा जाय । ख-विवाहोत्सव का खर्च इतना कम हो कि पैसे के अभाव से किसी का विवाह न रुक सके । ग-जिस मनुष्य की आमदनी इतनी अधिक नहीं है कि वह संतान का पालन कर सके तो वह कृत्रिम उपायों से सन्तान निग्रह करे। घ-विधवाओं को किसी भी हालत में समाज से बाहिर न किया जाय । अगर वह ब्रह्मचर्य से न रह सकती हो या न रह सकी हो तो उसके पुनर्विवाह का आयोजन किया जाय । उ-व्यभिचार के कार्य में व्यभिचारजात सन्तानका कोई अपराध नहीं है, इसलिये उनका दर्जा वैसा ही ससमा जाय जैसा कि अन्य सन्तान का समझा जाता है। च--अगर कोई विधवा आजीविका से दुःखी हो तो उसे आजीविका दी जाय, जिससे वह पेट के लिये वेश्या न बने। इस प्रकार अगर एक तरफ पुरुषों को वेश्या की आवश्यकता न रहेगी, दूसरी तरफ नियों को पेट के लिये इस घृणित व्यापार की आवश्यकता न रहेगी तब यह न्यापार भाप ही आप उठ जायगा। विरोधी-आत्मरक्षा या आत्मीय रक्षा के लिये यदि
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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