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________________ ब्रह्मचर्य ] [ १२९ वेश्याओं की सृष्टि है । इससे आगे ज्योंही वह संबंध बढ़ा त्योंही व्यभिचार हो गया । शंका-विवाहित पुरुष बेश्या सेवन से व्यभिचारी कहलावे, यह तो ठीक है क्योंकि वह जानता है कि 'मैं विवादित हूँ' । परंतु वेश्या तो नहीं जानती कि 'यह पुरुष विवाहित है या अविवाहित ' इसलिये उसका क्या दोष ? समाधान - वेश्या के लिये इस विषय में कुछ असुविधा जरूर है, परन्तु शुद्ध मन से उसे इस बात की जांच करना चाहिये और पता लग जाने पर उसको पास न आने देना चाहिये, और उससे अपत्नीक होने का वचन ले लेना चाहिये | शक्य उपायों के कर लेने पर भी अगर बोई धोका दे माय तो वेश्या व्यभिचार के दोष से मुक्त रहेगी, सिर्फ पुरुष ही व्यभिचारी कहलायेगा | शंका- तब तो येश्या अपना धंधा करते हुये भी अगर विवाहित पुरुषों से संबंध न रक्खे तो पंच अणुव्रत ले सकती है । समाधान - जो वृत्ति समाज की किसी अनिवार्य और अहिंसक आवश्यकता का फल है उसे करते हुए अणुव्रतों में बाधा नहीं पड़ सकती । इसलिये उपर्युक्त विवेक रखने वाली वेश्या भी अगर चाहे तो पांच अणुव्रतों का पालन कर सकती है 1 वेश्या का धंधा संकल्पी मैथुन न होने पर भी वह किसी समाज की शोभा नहीं है, बल्कि वह कलंक है - समाज की अव्यवस्था का सूचक है । इसलिये ऐसे साधनों को एकत्रित करना चाहिये जिससे इस प्रथा की जरूरत ही न रहे। इसके लिये निम्न
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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