SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनन्त का प्रत्यक्ष असम्भव [ २१ विनाश नहीं होता । अनादि अनन्तकाल में जितने पदार्थों का ज्ञान हम कर सकते हैं उन सब पदार्थों का ज्ञान शक्तिरूप में आत्मा में मौजूद है । इससे सिद्ध होता है कि अनन्तज्ञता आत्मा का स्वभाव है । और जो स्वभाव है उसका कभी प्रगट होना उचित ही है । उत्तर- एक आत्मा, मनुष्य हाथी घोड़ा गधा ऊंट साँप बिच्छू शेर उल्लू मच्छर आदि पर्यायें धारण कर सकता है इसलिये कहना चाहिये कि शक्तिरूप में ये समस्त पर्यायें आत्मामें मौजूद हैं इससे सिद्ध हुआ कि ये सब पर्यायें आत्मा का स्वभाव हैं । और जो स्वभाव है उसका प्रगट होना कभी न कभी सम्भव हैं, इसलिये एक ही समय में आत्मा मनुष्य और हाथी आदि बन जायगा | पर क्या यह सम्भव है ? क्या एक एक समय में आत्मा की दो पर्यायें हो सकती हैं ? हां, यह हो सकता है कि आत्मा कोई एक ऐसी पर्याय धारण करे जिसमें दो चार पशुओं के कुछ कुछ चिह्न हों जैसे नृसिंह या गणेश के रूप की कल्पना की जाती है । पर यह एक स्वतन्त्र पर्याय कहलायी । समस्त पर्यायों का एक साथ होना सम्भव नहीं है । घटज्ञान पटज्ञान आदि ज्ञान की अनेक अवस्थाएँ हैं, वे शक्तिरूप में भले ही मौजूद हों पर एक साथ सब पर्यायों का होना सम्भव नहीं है । उनकी व्यक्ति ऋमसे ही होगी । केवलज्ञान भी पदार्थ को जानेगा तो क्रमसे जानेगा । इसलिये एक समय में वह कभी अनन्तज्ञ नहीं हो सकता । 1 दूसरी बात यह है कि 'असत् का उत्पाद नहीं होता सत् का विनाश नहीं होता' यह नियम द्रव्य या शक्ति के विषय में है
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy