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________________ २० चौथा अध्याय तो हम कहेंगे कि आप मिथ्याज्ञानी हैं क्योंकि वस्तुका नाश नहीं होता न पर्यायहीन वस्तु होती है।। अगर केवली कहें कि जितनी पर्यायें मुझे दिखीं उनमें ऐसी कोई पर्याय नहीं है जिसके बाद कोई पर्याय न हो। ___ तब हम कहेंगे कि जितनी पर्यायें आपको दिखीं उनके बाद में भी कोई न कोई पर्याय है तो वह पर्याय या वे पर्याय आप को क्यों नहीं दिखीं ? बस ज्ञान की शक्ति का अन्त आ गया इसके सिवाय केवली और कुछ नहीं कह सकते ।। ... सर्वज्ञता की उपर्युक्त कल्पित परिभाषा का यहीं खण्डन हो गया । इस स्पष्ट बाधा को लोहे सीसे की पटरियों की कल्पना हटा नहीं सकती। प्रश्न-केवलज्ञान का विषय आप कितना भी मानिये परन्तु बह अनन्तकाल तक उतने विषय जानता है इसलिये अनन्तकाल में अनन्त को तो जान ही लिया । उत्तर--पर एक काल में अनन्त को न जान पाया अनन्तकाल में अनन्त को जानना तो कोई भी तुच्छ प्राणी कर सकता है। प्रश्न--जिसे हमने अनन्त समय में जाना उसे हम एक समय में भी जान सकते हैं । क्योंकि अनन्त समय का ज्ञान शक्तिरूप में सदा है। अगर शक्तिरूप में नहीं है तो वह पैदा कैसे हो गया ? जो शक्तिरूप में नहीं है वह न तो पैदा हो सकता है न नष्ट हो सकता है क्योंकि असत् की उत्पत्ति और सत् का
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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