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________________ केवली और मन [ १२३ प्रश्न-वार्तालाप आदि करने में तो सिर्फ यही आवश्यक है कि जो वह कहता है या करता है उसका जानकार हो और उस समय उसकी तरफ़ उपयोग भी हो, सो केवली त्रिकाल त्रिलोक को जानते हुए वक्तव्य या कर्तव्य पर उपयोग रखते ही हैं वार्तालाप आदि करने से प्रचलित सर्वज्ञता में क्या बाधा है ? उत्तर-बोलने या करने में ज्ञान इच्छा और प्रयत्न में एक विषयता आवश्यक है। अगर मैं घट बोलना चाहता हूं तो मेरा प्रयत्न घट उच्चारण के लिये होना चाहिये, मेरी इच्छा घट उच्चारण की होना चाहिये, मेरा उपयोग भी घट की तरफ होना चाहिये। उपयोग के अनुसार ही इच्छा प्रयत्न हो सकते हैं । अगर मेरा उपयोग सब पदार्यों की तरफ़ एक साथ हो तो मेरी इच्छा प्रयत्न भी सब पदार्थों को बोलने की तरफ़ होगा पर यह निष्फल होगा। क्योंकि एक साथ सब का उच्चारण नहीं हो सकता। इसलिये अगर हम केवली से खास शब्दों का उच्चारण करवाना चाहते तो यह आवश्यक है कि उसका ध्यान अन्य सब शब्दों और अर्थों से हटकर वक्तव्य और कर्तव्य विषय पर हो । इसी से प्रचलित सर्वज्ञता में बाधा आ जायगी। २.-भावमन के बिना मनोयोग कभी नहीं हो सकता। "भावमन की उत्पत्ति के लिये जो प्रयत्न है वही मनोयोग है" | मनोयोग की यह परिभाषा (१) कवली के भी भाव मन सिद्ध करती है । ३ -केवलज्ञान भी एक प्रकार का मानस प्रत्यक्ष है। नंदी १ भात्रमशः समुत्पत्त्यर्थः प्रयत्नः मनोयोगः । - श्रीधवल-सागरकी प्रतिका ५३ वाँ पत्र।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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