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________________ १२४ । चौथा अध्याय सूत्रमें ज्ञान के जो भेद प्रभेद कहे हैं उसमें केवलज्ञान नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष का भेद बताया गया है । ज्ञानके संक्षेप में दो भेद हैं--प्रत्यक्ष और परोक्ष । प्रत्यक्ष दो प्रकार का है - इन्द्रिय प्रत्यक्ष, नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष । इन्द्रिय प्रत्यक्ष पाँच प्रकार हैं--नोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष, चक्षुरिन्द्रिय प्रत्यक्ष, घाणेन्द्रिय प्रत्यक्ष, रसनेन्द्रिय प्रत्यक्ष, स्पर्शनेन्द्रिय प्रत्यक्ष । नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष तीन प्रकार का है - अवधिज्ञान प्रत्यक्ष, मन:पर्ययज्ञान प्रत्यक्ष, केवलज्ञान प्रत्यक्ष (१) । इससे मालूम होता है कि एक समय अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान मानसिक प्रत्यक्ष माने जाते थे; परन्तु पीछे से यह मान्यता बदल गई और खींचतान कर नोइन्द्रियका अर्थ आना कर दिया गया और उसका प्रसिद्ध अर्थ " मन " छोड़ दिया गया | परन्तु इसका सरल सीधा और सम्भव अर्थ लिया जाय तो इससे यह स्पष्ट होगा कि केवलज्ञान मानसिक प्रत्यक्ष है इसलिये केवली के मन होता है । कहा जा सकता है कि नन्दीसूत्र में भी केवलज्ञान का वर्णन वैसा ही किया गया है तथा उसके टीकाकारों ने नोइंद्रिय का अर्थ आत्मा भी किया है तब केवलज्ञान को मानस प्रत्यक्ष कैसे कहा जाय । १ तं समासओ दुविहं पण्णत्तं तं जहा पच्चदखं च परोवखं च ( सूत्र २ ) से किंतं पच्चक्खं ? पच्चक्खं दुविहे पण्णत्तं तं जहा इंदियपच्चक्खंः नोइंदियपच्चत्रखं ( सूत्र ३ ) से किं तं इंदिय पच्चक्खं । इन्दियपच्चक्खं पंचविहं पण्णत्तं तं जहा सो इन्दियपचखं चक्खिंदिय पच्चक्खं घाणिन्दिय पच्चक्ख जिभिदिय पच्चक्ख फासिंदिय पच्चक्खं । [सू. ४] से किं तं नोइन्दिय पञ्चवखं । नो इन्दिय पश्चवखं तिविहं पण्णत्तं तं जहा ओहिनाण पञ्चक्खं मणपज्जवणाण पञ्चक्वं कंवलनाणपच्चक्खं (सूत्र ५)
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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