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________________ १२२ ] चौथा अध्याय हैं कि अमुक भील मरकर तुम्हारा दूसरा पति होगा । आदिपुराण पर्व ४६ श्लोक ३४९ से ] ( ज ) इस तरह के बीसों उदाहरण दिये जासकते हैं जिनमें केवलियों ने प्रश्नोत्तर किये हैं । कोई अपने पूर्व जन्म पूछता है तो उसके पूर्वजन्म कह जात हैं। फिर कोई दूसरा पूछता है तो उसके पूर्वजन्म कहे जाते हैं। इस प्रकार के पूर्वजन्मों का वर्णन उन पूर्वजन्मों पर विशेष उपयोग लगाये बिना नहीं हो सकता। इसलिये इस विषय में दिगम्बर-श्वेताम्बर का विचार करना निरर्थक है। (झ) कूर्मापुत्र को जब केवलज्ञान पैदा हो गया तब वे विचार करते हैं कि “ अगर मैं गृहत्याग करूँगा तो पुत्रवियोग से दुखित होकर मेरे मातापिता का मरण हो जायगा ” इसलिये वे भावचरित्र को धारण करके केवलज्ञानी होनेपर भी मातापिता के अनुरोध से घर में रहे । कूर्मापुत्र के समान मातापिता का भक्त कौन होगा जो केवली होकरके भी उनके ऊपर दया करके घरमें रहे (१)। कोई त्रिकाल त्रिलोक का युगपत् प्रत्यक्ष भी कर और मातापिता के विषय में ऐसे विचार भी करे, यह असम्भव और अनावश्यक है। १ जइताव चरित्तमहं गहामि ता भञ्झ भायतायाणं । मरणं हविज नृण सय सोग वियोग दुहिआणं । १३५ । तम्हा केवलकमलाकलिओ निअमायताय उवरोहा । चिठ्ठइचिरं घरंमिय स कुमारो भाव चरित्तो । १३६ । कुम्मापत्तसरिच्छा की पुत्तो मायताय पयभत्तो जो केवली वि सघरे ठिओ चिरं तवणुकंपाए । १३७। कुम्मापुत्त चरिअम् ।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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