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________________ केशी-गौतम-संवाद ७३ www.mann und यहाँ एक बड़ा भारी प्रश्न यह खड़ा होता है कि क्या बाईस तीर्थंकरोंके समयमें छेदोपस्थापन संयम नहीं था ? उस समय क्या कोई मुनि किसी भी तरहका दोष नहीं लगाता था ? जब कोई भी मुनि कोई दोष लगाता ही नहीं था, तो संघ और आचार्यकी क्या आवश्यकता थी ? प्रायश्चित्त एक तप है । क्या म० महावीरके पहले ( बाईस तीर्थंकरोंके समयमें ) यह तप नहीं था अर्थात् क्या ग्यारह प्रकारका ही तप था ? विष्णुकुमार आदि मुनियोंके चरित्रसे मालूम होता है कि उस समय प्रायश्चित्त लिया जाता था, और प्रायश्चित्तके बाद संयम छेदोपस्थापन कहलाने लगता है। इससे यह बात साफ़ मालूम होती है कि म० महावीरके पहले छेदोपस्थापन संयम था । परन्तु किसी कारणसे अहिंसा, सत्य, अचौर्य और अपरिग्रह इन चार यमोंके स्थानमें सामायिक परिहारविशुद्धि आदि चार संयम आ गये हैं। कुछ भी हो परन्तु यह बात दोनों सम्प्रदायोंको स्वीकृत है कि म० पार्श्वनाथके समयमें चार यम थे और म० महावीरके समयमें पाँच हो गये। ___ केशी-गौतम-संवादके विषयमें कुछ लोगोंने अनेक आक्षेप किये हैं । इस चार यमवाली बातपर भी यह आक्षेप किया जाता है कि बाईस तीर्थंकरोंके समयमें प्रायश्चित्त तो था परन्तु छेदोपस्थापन तो भेदरूप चारित्र है, सो उस समय भेदरूप चारित्र नहीं था। ___ इस आक्षेपके अनुसार म० पार्श्वनाथके समयमें चारित्रका एक ही भेद था । अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ऐसे पाँच भेद नहीं थे । मेरे मतानुसार पाँचका अंतर्भाव चारमें किया जाता है जब कि इस मतके अनुसार एकमें ही किया जाता है । यह म० पार्श्वनाथ और म० महावीरके मत-भेदको और भी बढ़ा देता है तथा यह
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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