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________________ ७२ जैनधर्म-मीमांसा moon .. इससे यह बात मालूम होती है कि म० पार्श्वनाथके समयमें छेदोपस्थापनाका उपदेश नहीं था किन्तु म० महावीरके समयमें था । श्वेताम्बर-साहित्यके अनुसार तो पार्श्वनाथके समयमें चार व्रत थे परन्तु दिगम्बरोंके अनुसार तो अभेद रूपसे एक ही व्रत रह जाता है। क्योंकि एक यमरूप संयमको सामायिक संयम कहते हैं । ___" सम्पूर्ण संयमको एक यम बनाकर जो धारण करता है वह सामायिक संयमी जीव है ॥ ४७० ॥ जो पुरानी अवस्थाको छेदकर आत्माको पञ्च-यमरूप व्रतमें स्थापित करता है वह छेदोपस्थापनसंयमी जीव है ॥ ४७१ ॥"-गोम्मटसार जीव० x ___ संस्कृत-टीकामें छेदोपस्थापनाका स्पष्टीकरण और भी अच्छा हुआ है___“जो पहली सदोषव्यापाररूप पर्यायको दूर करके अपनेको पांच प्रकारके संयमरूप धर्ममें स्थापित करता है वह छेदोपस्थापनसंयमी है। +" ____ इस उद्धरणसे इतनी बात और स्पष्ट हो जाती है कि सामायिक संयमके बाद कोई दोष लगनेपर प्रायश्चित्त लेनेके बाद संयम अनेक रूप—पाँच रूप—हो जाता है, तबसे उसका नाम छेदोपस्थापना हो जाता है। . x संगहियसयलसंजममेयजममणुत्तरं दुरवगम्मं । जीवो समुव्वहंतो सामाइय संजमा होदि ॥ ४७० ॥ छेत्तूण य परियायं पोराणं जो ठवेइ अप्पाणं ॥ पंचजमे धम्मे सो छेदोवहावगो जीवो ॥ ४७१ ॥ -गोम्मटसार जीवकाण्ड । + प्राक्तनं सावद्यव्यापारपर्यायं प्रायश्चित्तैश्च्छित्वा आत्मानं व्रतधारणादिपंचप्रकारसंयमरूपधर्मे स्थापयति स छेदोपस्थापनसंयतः स्यात्। -टीका।
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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