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________________ केशी-गौतम-संवाद ७१ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwwwwanmmmmmmmmmmamrarrrrrrr कहा है । इससे मालूम होता है कि म० पार्श्वनाथका श्रुत अङ्गपूर्वोमें विभक्त नहीं था, वह एक ही संग्रह था जो श्रुत शब्दसे कहा जाता था। इससे म० पार्श्वनाथके श्रुतकी संक्षिप्तता या लघुता और म० महावीरके श्रुतकी महत्ता और विस्तीर्णता मालूम होती है । उत्तराध्ययनका जो अंश अभी उपलब्ध है उसे दिगम्बर सम्प्रदाय प्रमाण नहीं मानता, परन्तु उत्तराध्ययन आदि श्रुतको तो प्रमाण मानता है । उपलब्ध साहित्य अधूरा है यह बात ठीक है परन्तु जो उपलब्ध है उसे तो प्रमाण मानना चाहिये । उसमेंसे सिर्फ उतना ही अंश अमान्य किया जा सकता है जो कि खास दिगम्बर-सम्प्रदायके विरुद्ध बनाया गया मालूम हो । परन्तु केशि-गौतम-सम्वाद दिगम्बरत्वके विरुद्ध बनाया गया है, यह बात मालूम नहीं होती । अगर श्वेताम्बरोंने दिगम्बरत्वके विरोधके लिये केशि-गौतम-सम्वाद बनाया होता तो वे महावीरके दिगम्बरत्वकी बात कभी न करते-सिर्फ चातुर्यामकी बात कहकर सम्वाद पूरा कर देते । इसलिये यह सम्वाद मानना चाहिये । हाँ, यह अवश्य है कि सम्वादके विषयोंका ठीक ठीक वर्णन नहीं मिलता जैसा कि पिछले दस प्रश्नोंके विवरणसे मालूम होता है। __दूसरी बात यह है कि सम्वाद हुआ हो चाहे न हुआ हो परन्तु पार्श्वनाथ और महावीरका मत-भेद दिगम्बर-संप्रदाय भी मानता है। " बाईस तीर्थंकर सामायिक संयमका उपदेश करते हैं और भगवान् ऋषभ और वीर छेदोपस्थापनाका उपदेश करते हैं।" -मूलाचार ॥ ५३३ ।।* * बावीसं तित्थयरा सामायिय-संजमं उवदिसंति ।। छेदुवठावणियं पुण भयवं उसहो य वीरो य ॥--मूलाचार ॥ ५३३ ॥
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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