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________________ केशी-गौतम-संवाद केशि ३–आपके उत्तरोंसे मुझे सन्तोष हुआ । अब यह बताओ कि हजारों शत्रुओंके भीतर रहकर तुमने उन्हें कैसे जीता ? गौतम ३-एक अशुद्धात्मा ( अथवा मिथ्यात्व ) को जीत लेने पर पाँचों ( अशुद्धात्मा और चार कषाय ) जीत लिये जाते हैं और इन पाँचोंके जीत लेनेपर दस जीत लिये जाते हैं और दसके जीतनपर हज़ारों जीत लिये जाते हैं। केशि ४-सभी लोग बन्धनोंमें बँधे हुए हैं तब आप इन बन्धनोंसे कैसे छूट गये ? गौतम ४-राग-द्वेष आदिको चारों तरफ़से नष्ट करके मैं स्वतन्त्र हो गया हूँ। केशि ५–हृदयमें एक लता है जिसमें विष फल लगा करते हैं ( अर्थात् बुरे बुरे विचार पैदा हुआ करते हैं ), आपने वह लता कैसे उखाड़ी ? गौतम ५--तृष्णाको दूर करके मैंने वह लता नष्ट कर दी है। केशि ६-आत्मामें एक तरहकी ज्वालाएँ उठा करती हैं। तुमने इन्हें कैसे शान्त किया ? गौतम ६–ये कषायरूपी ज्वालाएँ हैं । मैंने महावीरद्वारा बताये गये श्रुत शील और तपरूपी जलसे इन्हें शान्त किया है । केशि ७-इस दुष्ट घोड़ेको कैसे वश करते हो ? - गौतम ७-दुष्ट घोड़ा मन है; उसे धर्म-शिक्षासे वश करता हूँ। केशि ८–लोकमें बहुतसे कुमार्ग हैं । आप उनसे कैसे बचते हो ? - गौतम ८-मुझे कुमार्ग और सुमार्गका ज्ञान है, इसलिये मैं उनसे बचा रहता हूँ। . केशि ९-प्रवाहमें बहते हुए प्राणियोंका आश्रय स्थान कहाँ है ?
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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