SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म-मीमांसा गौतम--भदन्त, इच्छानुसार पूछिये । केशि १–चार प्रकारके चारित्र-रूप धर्मको महावीरने पाँच प्रकारका क्यों बताया ? जब दोनोंका एक ही ध्येय है तब इस अन्तरका कारण क्या है ? गौतम १–पार्श्वनाथके समयमें लोग सरल प्रकृतिके थे, इसलिये वे चारमें पाँचका अर्थ कर लेते थे । अब कुटिल प्रकृतिके लोग हैं । उनको स्पष्ट समझानेके लिये ब्रह्मचर्यके विधानकी अलग आवश्यकता हुई। केशि २–महावीरने दिगम्बर वेष क्यों चलाया ? गौतम २—जिसको जो उचित है उसको वैसा धर्मोपकरण बतलाया है । दूसरी बात यह है कि लिंग तो लोगोंको यह विश्वास करानेके लिये है कि ' यह साधु है ' ( इसलिये दिगम्बर लिंग धारण करनेपर भी कोई बाधा नहीं है, क्योंकि यह भी लोकप्रत्ययका कारण हो सकता है )। तीसरी बात यह है कि संयमनिर्वाहके लिये लिंग है । चौथी बात यह है कि 'मैं साधु हूँ' इस प्रकारकी भावना बनाये रहनेके लिये लिंग है ( ये सब काम दिगम्बर लिंगसे भी हो सकते हैं ) और वास्तवमें तो ज्ञान-दर्शनचारित्र ही मोक्षके साधक हैं, लिंग नहीं । *केसि एवं बुवाणं तु गोयमो इणमन्बवी । विनाणेण समागम्म धम्मसाहणमिच्छियं ॥ ३२ ॥ पच्चयत्थं च लोगस्स नाणाविहविकप्पणं । जत्तत्थं गहणत्थं च लोगे लिंगपओअणं ॥ ३२ ॥ अह भवे पइन्ना उ, मुक्ख सन्भूयसाहणा। नाणं च दंसणं चेव चरित्तं चेव निच्छए ॥ ३३ ॥
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy