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________________ जैनधर्म-मीमांसा mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm गौतम ९-पानीमें एक द्वीप है जहाँ प्रवाह नहीं पहुँचता। वह धर्म है। केशि १०-यह नौका तो इधर उधर जाती है । आप समुद्रपार कैसे करोगे ? - गौतम १०-शरीर नौका है जिसमें आश्रव लगे हुए हैं। वह पार न पहुँचायगी, परन्तु आश्रवरहित नौका पार पहुँचायगी । केशि ११–सब प्राणी अँधेरेमें टटोल रहे हैं । इस अन्धकारको कौन दूर करेगा? गौतम ११--सूर्यके समान जिनेन्द्र महावीरका उदय हो गया है। केशि १२-दुःखरहित स्थान कौन है ? गौतम १२- लोकाग्रमें स्थित निर्वाण । केशि-आपने मेरे सब संशयोंको दूर कर दिया । आपको मैं नमस्कार करता हूँ। इसके बाद केशिने म० महावीरके धर्मको स्वीकार कर लिया ।' यह संवाद बड़े महत्त्वका है। इसके ऊपर जितना ध्यान दिया जाना चाहिये उतना अभी तक नहीं दिया गया है, इससे मालूम होता है कि पार्श्वनाथ और महावीरके अनुयायियोंमें अवश्य ही द्वेष पैदा हुआ होगा । परन्तु पीछेसे पार्श्वनाथ और महावीरके अनुयायियोंमें सुलह हो जानेसे इसका उल्लेख सूत्रोंमें नहीं मिलता; सिर्फ मतभेद मिलता है। मतभेदमें व्रत-संख्या और वेषका विषय ही मुख्य है परन्तु पिछले दस प्रश्न उपक्षणीय नहीं हैं । केशि और गौतमका सम्वाद गुरुशिष्यका सम्वाद नहीं था, किन्तु पार्श्वनाथ और महावीरके मत-भेदोंके
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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