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________________ केशी-गौतम-संवाद AAAAAAAA arrrror nnn po r nnn . . . उद्धारक मानते हैं, इतने पर भी अगर उनके मुँहसे कुछ ऐसी बातें निकल गई हैं जो कि किन्हीं दूसरी बातोंपर प्रकाश डालती हैं तो समझना चाहिये कि यह सब ऐतिहासिक सत्यके अनुरोधसे निकल गई हैं । खैर, अब यहाँ उस संवादका सार दिया जाता है । केशी-गौतम-संवाद ___“ पार्श्वनाथ तीर्थङ्करके अनुयायी * केशिकुमार विद्या और चारित्रके पारगामी श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी थे । एक बार वे शिष्य-मण्डलसहित श्रावस्ती नगरीके उद्यानमें पहुँचे । उसी समय म० महावीर भी वहाँ आये हुए थे जिनके शिष्य गौतम बारह अङ्गके धारक थे । एक दूसरेको देखकर दोनोंके शिष्योंको यह चिन्ता हुई कि पार्श्वनाथने चातुर्याम ( अहिंसा, सत्य, अचौर्य और अपरिग्रह इस प्रकार चार व्रतवाला ) धर्म x क्यों कहा और महावीरने पंच-शिक्षित क्यों कहा ? इसी प्रकार पार्श्वनाथने नग्न रहनेका विधान नहीं किया था और महावीरने नग्न रहनेका विधान क्यों किया ? शिष्योंके ये विचार जानकर केशी और गौतमने मिलकर परामर्श कर लेना उचित समझा और गौतम शिष्यमंडली सहित केशिकुमारके पास गये। उस समय और भी गृहस्थ श्रोता वहाँ आ गये । दोनोंमें इस प्रकार वार्तालाप हुआ। केशि-महाभाग, मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ। ___ * म० पार्श्वनाथके पीछे पार्श्व-धर्मके संघ-नायक क्रमसे शुभदत्त, हरिदत्त, आर्यसमुद्र, प्रभ और केशिकुमार हुए हैं । म० महावीरके समय केशिकुमार म० पार्श्वनाथके अनुयायियोंके एकमात्र आचार्य थे। xआचारो वेषधारणादिको बाह्यक्रियाकलापः स एव धर्महेतुत्वाद्धर्मः । -११ टीका।
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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