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________________ जैनधर्म-मीमांसा vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvwvw मिलता नहीं है इसलिये कह नहीं सकते कि इन दोनों धर्मों में क्या अन्तर था । जैन शास्त्रोंमें थोड़ासा वर्णन मिलता हैं उससे उस अन्तरकी कुछ बातें मालूम होती हैं । · पार्श्व-धर्म और जैन-धर्मके मिल जानेका एक विशेष कारण यह था कि म० महावीरके पिता सम्भवतः इसी धर्मके अनुयायी थे। परन्तु उस युगकी समस्याओंको हल करनेमें पार्श्व-धर्मको अपर्याप्त समझकर महावीर स्वामीने नई धर्म-संस्थाकी नीव डाली और उस नये धर्ममें पुराने लोगोंको भी खींच लिया। परन्तु इस प्रकार अनुयायियोंके मिल जानेसे दो धर्म एक धर्म नहीं बन सकते। ___ दो तीर्थंकर और दो धर्मके नियमको समझनेके लिये पश्चिमके धर्मोपर भी हमें नज़र डाल लेना चाहिये । म० मुहम्मदने अपनेको पैगम्बर कहनेके साथ म० ईसा, म० मूसा आदिको भी पैगम्बर कहा था और कहा था कि उनके धर्मको लोग भूल गये, इस लिये ईश्वर मेरेद्वारा उसका प्रकटीकरण कर रहा है। परन्तु इसीलिये इस्लामका प्रारम्भ म० ईसा, म० मूसा या म० इब्राहीमसे नहीं कहा जा सकता । उसका प्रारम्भ म० मुहम्मदसे ही कहा जाता है जो कि उचित है । इस प्रकार तीर्थंकर कितने भी हो गये हों परन्तु जैनधर्मका प्रारम्भ म० महावीरसे ही कहा जायगा । ___ म० महावीरने जिस धर्म-संस्थाको जन्म दिया उसका नाम आज जैनधर्म है परन्तु यह नाम म० महावीरसे पीछेका है। धीरे धीरे जब · जिन ' नाम म० महावीरके लिये रूढ़-सा हो गया तब उनकी संस्थाका नाम भी जैन हो गया । म० महावीरके समयमें तो उनके अनुयायियोंका खास नाम नहीं बना था। महावीर स्वामी · निग्गण्ठ
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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