SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म-मीमांसा उत्तर - कार्य प्रत्येक कारणका रूपान्तर नहीं होता किन्तु सिर्फ उपादान* कारणका रूपान्तर होता है । घड़ा बनानेके लिये मिट्टी और कुम्हार दोनोंकी आवश्यकता है किन्तु घड़ा सिर्फ मिट्टीका रूपान्तर है न कि कुम्हारका । इसी प्रकार स्नायुओंकी क्रियासे मस्तिष्क में कम्पन होता है; मस्तिष्क के कम्पनसे चैतन्य पैदा होता है । जब कि चैतन्य कम्पन रूप नहीं है तब कम्पन उसके लिये निमित्त कारण हुआ, इसलिये चैतन्य (जानना) उससे अलग वस्तु ही रहा । प्रश्न - जब स्नायुओंकी प्रक्रिया से हमें चैतन्य या वेदन उत्पन्न होता हुआ दिखलाई देता है तब हम एक नयी वस्तु ( गुण) की कल्पना क्यों करें ? २३४ उत्तर—प्रत्येक कार्यके लिये दो तरह के कारणोंकी आवश्यकता होती है - एक निमित्त और दूसरा उपादान + । इनमें से किसी एक विमा कार्य पैदा नहीं हो सकता । जो मिट्टी इस समय घड़ा बन रही है वह इस समयसे पहिले घटरूप क्यों न हुई ? इसके उत्तर में हमें कहना पड़ेगा कि उसके लिये अन्य कारण नहीं मिले थे। जिन अन्य कारणोंके मिलनेसे मिट्टी घड़ा बन सकी वे ही घड़ेके निमित्त कारण हैं। यदि निमित्त कारणके बिना कार्य होता तो अमुक * वस्तु शब्दका अर्थ यहाँ पुगल (Matter) नहीं है किन्तु अस्तित्ववाला कोई भी पदार्थ लिया जा सकता है । इसका अर्थ thing, something, any substance आदि करना चाहिये । + जो कारण स्वयं कार्यरूप परिणत होता है उसे उपादान कारण कहते हैं; जैसे घड़ेके लिये मिट्टी उपादान कारण है । जो कारण कार्यरूप परिणत नहीं होता उसे निमित्त कारण कहते हैं, जैसे घड़ेके लिये कुम्हार, चक्र आदि । आवश्यक दोनों हैं ।
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy