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________________ सम्यग्दर्शनका स्वरूप विरुद्ध एक अक्षर भी सुनना नहीं चाहते, उन्हें आप श्रद्धालु कहेंगे या अन्धविश्वासी ? उत्तर -- जो लोग जैनधर्मके ऊपर इसलिये विश्वास रखते हैं कि वे उसे कुलपरम्परासे अपनी चीज़ समझते हैं वे अन्धविश्वासी हैं क्योंकि इसके भीतर अभिमान है; विवेक नहीं । जो अपने विश्वासके विरुद्ध एक अक्षर भी सुनना नहीं चाहते वे और भी अधिक अन्धविश्वासी हैं, क्योंकि जिस बातपर वे विश्वास करते हैं उसे वे कमजोर समझते हैं । इसीलिये वे विरुद्ध बात सुन नहीं सकते - फिर भी उसपर 1 विश्वास करते हैं । इन दोनों विचारोंके लोग जैनधर्मसे इतना ही लाभ उठा सकते हैं कि उनके बाहिरी आचरणमें कुछ सुधार हो जाय परन्तु वे सम्यग्दृष्टि नहीं हो सकते। सम्यग्दर्शनके बिना कभी कभी बाह्याचरणकी शुद्धि भी अभिमान और द्वेषको पैदा करके बहुत अध: पतन करती है । इसलिये सम्यग्दर्शन की अत्यन्त आवश्यकता बतलाई गई है । अन्धविश्वासी लोग दुनियाँके लिये भयङ्कर जीव हैं, जब कि श्रद्धालु जगत्का मित्र है । प्रश्न- - श्रद्धाका स्वरूप और उसकी आवश्यकता समझमें आ गई; परन्तु किस बातकी श्रद्धा की जाय ? उत्तर - हमारा लक्ष्य सुख है इसलिये सुखके मार्गपर श्रद्धा करना चाहिये । प्रथम अध्याय में सुखका मार्ग बताया गया है,. विश्वास करना चाहिये । उसपर प्रश्न – शास्त्रों में लिखा है कि आत्माको शरीरसे पृथक् अनुभव करना या शुद्धात्माका अनुभव करना सम्यग्दर्शन है । यदि सुखकें मार्गका श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है तो आत्मानुभवकी कोई आव २१९
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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