SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मतभेद और उपसम्प्रदाय १९७ mmmmmmmmmmmmmarrrrrrrrmmmmmwww.amarnarrammmmmmwww. विमानमें पैदा होना और मृत शरीरमें प्रविष्ट होना इन बातोंका ऐतिहासिक तथा दार्शनिक दृष्टिसे कुछ भी मूल्य नहीं है। इतना ही नहीं बल्कि जैन सिद्धान्तसे भी यह एक तरहसे मेल नहीं खाता। वीर निर्वाणके २१४ वर्ष बाद जैन शास्त्रोंके अनुसार भी न तो यहाँ कोई केवली था और न अवधि ज्ञानी आदि । तब यह बात किसने बतलाई कि आचार्य मरकर अमुक स्वर्गके अमुक विमानमें देव हुए हैं। इसलिये देवकी बातका कुछ मूल्य नहीं है । फिर भी इस घटनाका कुछ मूलरूप तो होना ही चाहिये । जिसका परिवर्तित रूप इस प्रकार बना और एक निवकी संख्या बढ़ी । सम्भव है उसका निम्नलिखित रूप हो___ कभी कभी ऐसा होता है कि कोई आदमी मरनेके पहले मृतवत् मूछित हो जाता है। उसकी नाड़ी और हृदयकी गति भी रुक जाती है। लोग समझते हैं कि वह मर गया किन्तु वह मूच्छित होता है। थोड़ी देर बाद वह होशमें आता है तो लोग समझते ह कि मरा हुआ आदमी जीवित हो गया। परन्तु यह होश थोड़ी देरके लिये आया करता है; अन्तमें वह बिलकुल मर जाता है। ऐसी घटनाएँ अनेक बार हुआ करती हैं । एक बार इन्दौरमें मेरे सामने एक ऐसी ही घटना हुई थी। एक चूड़ीवाला चूड़ी पहिनाते पहिनाते मर गया (बेहोश हो गया)। उसके घरवाले उस मुर्देको ले गये, पुलिसकी जाँच भी हो गई; परन्तु पीछेसे वह जी गया (होशमें आ गया)। उसने सबसे बातचीत की और फिर मर गया । जिन लोगोंके यहाँ मुर्देको पेटीमें बन्द करके गाड़ देनेकी प्रथा है उनके यहाँ कभी कभी जीवित समाधि हो जाती है। वे पेटीमें जी उठते हैं, और निकलनेके
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy