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________________ जैनधर्म-मीमांसा rrrrrrrrrrrammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm देवोंका वर्णन भक्तिकल्प्य है तब उनके द्वारा बनाये गये मायामय शरीरका वर्णन भी मायामय है । 'देवोंका शरीर मरनेपर उड़ जाता है तब देवोंके देवका शरीर भी उड़ जाना चाहिये' इस विचारसे यह कल्पना की गई है । परन्तु यह अस्वाभाविक तो है ही, साथ ही अनावश्यक भी है । यदि केवलज्ञानके होनेसे शरीरमें इतनी विशुद्धि आ जाती है कि वह कर्पूरकी तरह उड़ जाता है तो अन्य केवलियोंका शरीर भी उड़ना चाहिये, परन्तु अन्य केवलियोंका शरीर निर्वाणके बाद उड़ नहीं जाता इसके अनेक उल्लेख मिलते हैं। 'आराधना-कथाकोष' में सञ्जयन्त मुनिकी एक कथा है । एक विबुद्दष्ट्र विद्याधरने इन्हें मरवा डाला था । उपसर्गके समय इन्हें केवलज्ञान पैदा हुआ और इनने मुक्तिलाभ किया । निर्वाणोत्सवके समय इनका छोटा भाई जयन्त भी आया। उसे अपने भाईकी ( संजक्त केवलीकी ) मृत देहको देखकर क्रोध आ गया । उसने विद्युइंष्ट्रको पकड़ लिया........आदि । इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि संजयन्त केवलीकी मृत देह उड़ नहीं गई थी। इसी प्रकारका एक उल्लेख पद्मपुराणमें भी है । वहाँ निर्वाण हो जानेके बाद उनके शरीरकी पूजा देवोंने की है+ । इससे यह बात स्पष्ट है कि केवलज्ञानके होनेसे शरीरका उड़ जाना दिगम्बर सम्प्रदायको भी मान्य नहीं है । यह कल्पना तो है ही परन्तु पीछेकी है यह बात +ततो मेलस्थिरस्यास्य गुडध्यानावगाहिनः । उत्पन्नं केवलज्ञानं देहमुक्तेरनन्तरं ।। आगत्य च सहेन्द्रेण प्रमोदेन सुरासुराः । चक्रुर्देहार्चनं तस्य दिव्यपुष्पादिसम्पदा ॥ प. पु. २२ कपर्व ९५-९६
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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