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________________ दिगम्बर श्वेताम्बर भी निश्चित होती है । म० महावीरके शरीरका अग्निसंस्कार किया गया इससे उनके गौरवमें कुछ भी बट्टा नहीं लगता । इसलिये हमें इस अवैज्ञानिक कल्पनाका त्याग कर देना चाहिये । दिगम्बर - श्वेताम्बर । यह बात असम्भवसम है कि किसी लोकोत्तर महात्मा के विरोधी न हों । म० महावीरके विरोधी भी बहुत थे । परन्तु जो विरोधी अन्त तक विरोधा रहे वे जैनसंघसे बाहिर ही समझे गये । इसीलिये गोशालक, जमालि आदि जैनसंघसे बाहिर रहे । परन्तु पीछे यह बात नहीं हो सकती थी । पीछे जिन लोगों में मतभेद हुआ वे म० महावीरको बराबर मानते रहे और अपनेको म० महावीरके सच्चे अनुयायी कहते रहे । इसलिये पीछेके मतभेद जैनधर्ममें विविध सम्प्रदायोंके कारण हुए । १८३ धैनधर्ममें सम्प्रदाय अनेक हुए हैं परन्तु मुख्य सम्प्रदाय दो हैंदिगम्बर और वेताम्बर । ये दोनों सम्प्रदाय कब और कैसे हुए इसका प्रामाणिक इतिहास लुप्त है । दिगम्बर सम्प्रदायने श्वेताम्बर सम्प्रदायकी उत्पत्तिकी एक कथा बना ली है और श्वेताम्बर सम्प्रदायने दिगम्बर सम्प्रदायकी एक कथा बना ली है। दोनों ही द्वेषमूलक और अप्रामाणिक हैं । मेरे खयाल से ये दोनों सम्प्रदाय किसी एक घटनाके परिणाम नहीं हैं किन्तु बहुत दिनोंके मतभेदके परिणाम हैं । सम्भवतः वह मतभेद म० महावीर के समयमें भी होगा । यह बात तो निश्चित है कि म० महावीर दिगम्बर वेशमें रहते थे । इसलिये उनके संघके
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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