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________________ महावीर-निर्वाण नहीं है। म० महावीरके जीवनसे हमें ऐसे परिवर्तनोंकी आवश्यकताका अनुभव होता है । म० महावीरका जीवन-चरित अनेक समस्याओंको हल करनेवाला है। कैवल्य प्राप्त करनेके बाद करीब तीस वर्ष तक म० महावीर जीवित रहे और प्राणियोंकी नैतिक उन्नतिके लिये उनने बहुत काम किया । २४६२ वर्ष पूर्व पावामें उनका निर्वाण हुआ । अनेक राजाओंने और श्रावक-श्राविकाओंने मिलकर उनका दाहसंस्कार किया । मुनिलोग भी इस समारम्भमें शामिल हुए थे । अनेक प्रकारके चन्दनोंसे चिता तैयार की गई थी और जब अस्थियाँ रह गईं तब बुझा दी गई थी। अस्थियोंको राजाओंने बाँट लिया था। शास्त्रोंमें इस उत्सवको देवकृत बना दिया गया है। अग्नि लगाने वालोंको अग्निकुमारदेव, वायु चलानेवालोंको वायुकुमारदेव, पानीसे चिता बुझानेवालोंको मेघकुमारदेव; अस्थियाँ ले जानेवालोंको इन्द्र कहा गया है जो कि उस समयकी प्रथाके अनुसार ठीक है । - कुछ लोगोंकी ( खासकर दिगम्बरोंकी ) ऐसी मान्यता है कि निर्वाण होनेके बाद केवलीका शरीर · बिजली या कर्पूरकी तरह उड़ जाता है, सिर्फ नख और केश रह जाते हैं तब इन्द्र मायामय शरीर बनाता है और उसका दाहसंस्कार करता है। परन्तु जब *तनुपरमाणू दामिनिवत् सब खिर गये । रहे सेस नखकेस रूप जे परिणये ॥ तब हरिप्रमुख चतुरविध सुरगण सुभसच्यौ । मायामह नखकेसरहित जिनतनु रच्यौ रचि अगर चन्दनप्रमुखपरिमलद्रव्य जिनजयकारियौ। . पदपतित अमिकुमार मुकुटानल सुविधि संस्कारियौ ॥ -जिनेन्द्रपंचकल्याणक । : स्वभावोऽयं जिनादीनां शरीर-परमाणवः । मुंचंति स्कंधतामन्ते क्षणाक्षणरुचामिव । हरिवंश पु० ६५-१३
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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