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________________ कर्मक्षयजातिशय १६५ क्षयजातिशय माना गया है जब कि दिगम्बर सम्प्रदाय में इसी ढंगका अतिशय देवकृत माना गया है । वास्तवमें यह अतिशय देवकृत अर्थात् तीर्थंकरके भक्तों के द्वारा किया गया अतिशय मानना चाहिये । I मस्तक के पास सूर्य से बारह गुणें तेजवाला भामण्डल हो । यह एक प्रसिद्ध बात है कि महात्मा पुरुषोंके सिरके चारों तरफ एक तेजोमण्डल होता है । कोई कोई वैज्ञानिक भी इस बातको स्वीकार करते हैं । इसलिये म० महावीरके चारों ओर भामण्डल होना उचित ही है । दिगम्बर सम्प्रदायने इसे प्रतिहार्यौमें माना है । श्वेताम्बर सम्प्रदायने दो भामण्डल माने हैं । एक तो यही सूर्यसे बारह गुणें तेजवाला और दूसरा अष्टप्रतिहार्यों में उल्लिखित । दूसरा भामण्डल देवकृत है । जो भामण्डल सूर्य से बारह गुणें तेजवाला हो उसकी तरफ लोग दृष्टि कैसे कर सकते हैं ? इसलिये उसके तेजको हरण करनेवाला यह देवकृत भामण्डल माना गया है । प्रभामण्डलको सूर्य से बारहगुणा कहनेका मतलब यह मालूम होता है कि प्रलयकालमें सूर्य जब अत्यधिक तेजस्वी होता है तब उसका तेज वर्तमान तेजसे बारह गुणा हो जाता है । इससे अधिक तेजका कहीं उल्लेख नहीं मिलता । तीर्थंकरको सबसे अधिक तेजस्वी बतलानेके लिये यह उपमा दी गई है। दिगम्बर सम्प्रदाय में कहीं कहीं इस भामण्डलको सूर्यसे हज़ार गुणा * कहा है। यह भी कवित्व है । पहिले इसके वर्णनमें यह कहा गया होगा कि यह भामण्डल सूर्यौका भी सूर्य है, आकाश * आकस्मिकमिव युगपद्दिवस कर सहस्रमपगतव्यवधानम् । . भामण्डलमविभावितरात्रिंदिवभेदमतितरामाभाति । - दशभक्ति ॥
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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