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________________ २८ सम्राद, कुण के अत्याचार सहन करने पड़े थे जो प्रारम्भ में जैनी था किन्तु पीछ जाकर अपनी चोल वंशीय रानी के प्रभाव से शैव धनगया था। उसने अपना धर्म परिवर्तन करते ही, उन जैनियों पर भी अनेक अमानुषिक अत्याचार किये कि जिनने उसकी तरह शव बनने से इनकार कर दिया था। इतिहास कहता है कि ऐसे आठ हजार जैनी तो बिलकुल कल ही करवादिये गये थे। आज भी मदुग के हिन्द उस स्थान पर प्रति वप उत्सव मनाते हैं। उपरोक्त समय में, जिसका हम नियों की घटता का समय कह सकते हैं, लगभग समप्र ही भारतवर्ष में, जैनियों के प्रति हिन्दुओं का ऐसा ही बर्ताव रहा है। इस बात को सब जानते हैं कि दो विरोधी पक्ष वाले तब तक ही एक दूसरे का मकाबला करने रहते हैं जबतक उनको अपनी विजय की श्राशा रहती है और जब उनमें से किसी को भी दूसरे पक्ष वाले के मकावले में अपनी सफलता की भाशा बिलकुल नहीं रहती ना वह उससे मिलजुलकर और उसे खुश रखकर ही अपना अस्तित्व कायम रखने का प्रयन्न करना है। ऐसे संकट से वचन का जैनियों के लिये भी यही उपाय था कि भीतरी तौर पर जैन धर्म को पालन करते रहकर बाहरी
SR No.010097
Book TitleJain Dharm aur Murti Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirdhilal Sethi
PublisherGyanchand Jain Kota
Publication Year1929
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size2 MB
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