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________________ अन्वषण के द्वारा यह अची तरह प्रमागिन करदिया है कि जान्द मनाक पदायों में उत्पन्न हान है, और मृतीक पदार्थों में हो गजान हैं मालग पयं प्रकार की मम मनियां हैं। मनुष्य आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग में ज्या ज्या श्रागे बढ़ता आ चलाजाना है न्यों न्यो उमक ध्यान का अवलंबन मृत श्राधार भी स्थूल में सूक्ष्म की नरफ क्रमशः बढ़ना हुआ चल। जाना है और अंत में मृत आधार के अम्नित्व का बिलकुल ही लोप होजाना है। यही कारण है कि नियों के प्रवलम्बन के विना प्रामचितवन में असमर्थ मनुष्यों की अहनों की है श्री चतन अमृतक । शब्दों की उत्पनि अचनन पदार्थसंह और उमीकारण वह मृतक होने हैं। जिस प्रकार पानी में पर न म उममें हलचल मच आनी है और वहाँ से लहर पैदाहोकर पानी में चागं ार फल जानी है उसी प्रकार वायु में भी मुंह के द्वारा या किसी और तरीके से प्राधान पहुँ. चने पर एक प्रकार की लहर पैदा होकर वायुमंडल में चारों और फैल जाती हैं जिनको हम कानी के द्वारा ग्रहण करते। और अपने कार्यों के लिये मुक्तार किया हु मतों के अनुसार उनमे मतलब निकाल लेनेहैं ।
SR No.010097
Book TitleJain Dharm aur Murti Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirdhilal Sethi
PublisherGyanchand Jain Kota
Publication Year1929
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size2 MB
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