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________________ ऊपर नीन प्रकार के ध्यान बताये गये हैं। उनमें से पहला उत्कृष्ट ध्यान तो जहां कल्पना का भी अस्तित्व नहीं होता. केवल निर्विकल्य समाधि अवस्था को प्रामहुए मुनियों के द्वाग दी लगाया जामकना है अनाव वह . उममें नीचे दरजे के माध और गृहस्थों के लिये. निरुपयोगी है और उस अवस्था के प्राप्त होन नक हमार लिय उपासना के कंवल दो ही मावन रहजाने हैं :- ( 2 ) परमात्मा या जीवनमुक्त परमात्मा (अहन्ली) के स्वाभाविक गुणों के यौनक शब्दों का अवलम्बन लकर ( २ : जीवनमुक परमात्मा ( अहन्ता ) के स्वाभाविक गुणों के गातक शन्नों पार उन्हीं की नहाकार मनियों का अवलंबन लेकर। दानों कार के ध्यान के 'अबलम्बन , अन्न पौर पनि , मृताक है। मीलिय दम हमकन हैं कि (निर्विकल्प ज्यान के पलाया ) संग्मार की काई भी उपासना बिना मृत पदार्थ के अवलम्बन हा ही नहीं सकती, चाहे वह मन पदार्थ शव की नग्न मूक्ष्म हो या पापाण की मूर्तियाँ और चित्र आदि की तरह म्यूल । शब्द मूर्तीक पदार्थ है यह बात जैन धर्म में मिद्ध है; और आधुनिक विज्ञान ने भी Wirelesna tendo comply wit liguropone af ___ लामांनुसार संसार की उत्पति कमल दो प्रकार की वस्तुओं से ही है ( ननन () अचगान । अनेनन पदार्थ मूतीक
SR No.010097
Book TitleJain Dharm aur Murti Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirdhilal Sethi
PublisherGyanchand Jain Kota
Publication Year1929
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size2 MB
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