SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०८ जैनधर्म के दिन चतुविध संघके साथ उसकी पूजा की, जिससे श्रुत पञ्चमी तिथि दि० जैनियोंमें प्रख्यात हो गई । उस तिथिको वे शास्त्रोकी पूजा करते है । उनकी देख-भाल करते हैं, धूल तथा जीवजन्तुसे उनको सफाई करत है। श्वेताम्वरोमें कार्तिक सुदी पचमीको ज्ञानपंचमी माना जाता है। उस दिन वे धर्मग्रन्थोकी पूजा तथा सफाई वगैरह करते है । } उक्त पर्वोके सिवा प्रत्येक तीर्थङ्करके गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान और निर्वाणके दिन कल्याणक दिन कहे जाते है । उन दिनोमें भी जगह जगह उत्सव मनाये जाते है । जैसे अनेक जगह प्रथम तीर्यङ्कर ऋषभदेवकी ज्ञान जयन्ती या निर्वाणतिथि मनाई जाती है । दीपावली ऊपर जो जन पर्व बतलाये गये है वे ऐसे है जिन्हें केवल जैन धर्मानुयायी ही मनाते है । इनके सिवा कुछ पर्व ऐसे भी है जिन्हें जैनो के सिवा हिन्दू जनता भी मनाती है। ऐसे पर्वोंमें सबसे अधिक उल्लेखनीय दीपावली या दिवालीका पर्व है। यह पर्व कार्तिक मासकी अमावस्याको मनाया जाता है। साफ सुथरे मकान कार्तिको अमावस्याकी सन्ध्याको दीपोंके प्रकाशसे जगमगा उठते है । घर घर लक्ष्मीका पूजन होता है। सदियों से यह त्योहार मनाया जाता है, किन्तु किसीको इसका पता नही है कि यह त्यौहार कब चला, क्यो चला और किसने चलाया ? कोई इसका सम्बन्ध रामचन्द्रजी के अयोध्या लोटनेसे लगाते है । कोई इसे सम्राट् अशोककी दिग्विजयका सूचक बतलाते हैं । किन्तु रामायणमें इस तरहका कोई उल्लेख नही मिलता है, इतना ही नही, किन्तु 'किसी हिन्दू पुराण वगैरह में भी इस सम्बन्धमें कोई उल्लेख नही मिलता। १---श्री वासुदेव शरण अग्रवालने हमें सुझाया है कि वात्स्यायन कामसूत्रमें दीपावलीको यक्षरात्रि महोत्सव कहा गया है । तथा चौद्धोक 'पुप्फरत' जातकमें कार्तिकी रात्रिको होने वाले उत्सवका वर्णन है इसी प्रकार कार्तिककी पौर्णभासोको होने वाले उत्सवका वर्णन 'धम्मपद अटकथा में पाया जाता है। इन
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy