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________________ विविध ३०७. जलस निकालते है और रात्रिमें सार्वजनिक सभाका आयोजन होता है। भारत भरमें बहुत-सी प्रान्तीय सरकारोंने अपने प्रान्तमें महावीर जयन्तीकी छुट्टी घोषित कर दी है। केन्द्रीय सरकारसे भी जैनोंकी यही मांग है। वीरशासन जयन्ती जैनोंके अन्तिम तीर्थकर भगवान् महावीरको पूण-ज्ञानकी प्राप्ति हो जानेपर उनकी सबसे पहली धर्मदेशना मगधकी राजगृही नगरीके विपुलाचल पर्वतपर प्रात कालके समय हुई थी। उसीके उपलक्षमें प्रतिवर्ष श्रावण कृष्णा प्रतिपदाको वीर गासन जयन्ती मनाई जाती है। गत वि० सं० २००१ में पहले राजगृहीमें और वादको कलकत्तामे अढाई हजारवाँ वीर शासन महोत्सव बडी धूम-धामसे मनाया गया था। श्रुत पञ्चमी दिगम्बर सम्प्रदायमें धीरे-धीरे .जब अंग ज्ञान लुप्त हो गया तो अंगों और पूर्वोके एक देशके ज्ञाता आचार्य घरसेन हुए। वे सोरठ देशके गिरनार पर्वतकी चन्द्रगुफामें ध्यान करते थे। उन्हें इस बातकी चिन्ता हुई कि उनके बाद श्रुत ज्ञानका लोप हो जायेगा, अत उन्होने महिमा नगरीमें होनेवाले मुनि सम्मेलनको पत्र लिखा, जिसके फलस्वरूप वहाँसे दो मुनि उनके पास पहुंचे। आचार्यने उनकी बुद्धिकी, परीक्षा करके उन्हें सिद्धान्त पढाया और विदा कर दिया। उन दोनों मुनियोंका नाम पुष्पदन्त और भूतबलि था। उन्होने वहाँसे आकर षट्खण्डागम नामक सिद्धान्त ग्रन्यकी रचना की। रचना हो जानपर भूतवलि आचार्यने उसे पुस्तकारूढ करके ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी१. "ज्येप्ठसितपक्षपञ्चम्यां चातुर्वप्यमघसमवेत । तत्पुस्तकोपकरणयंघात् क्रियापूर्वक पूनाम् ।।१४३॥ ध्रुतपञ्चमीति तेन प्रत्याति तिपिरय परामाप । अद्यापि येन तस्या भुतपूजी कुर्वने ना ॥१४॥" इन्द्रनन्दि-शुतावतार।
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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