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________________ विविध ३०९. बौद्धधर्ममे तो यह त्यौहार मनाया ही नहीं जाता। रह जाता है जन सम्प्रदाय । इस सम्प्रदायमे शक सं०७०५ (वि० सं०८४०) का रचा हुमा हरिवंश पुराण है। उसमें भगवान महावीरके निर्वाणका वर्णन करते हुए लिखा है-"महावीर भगवान् भव्यजीवोको उपदेश देते हुए पावा नगरीमे पधारे, और वहाँके एक मनोहर उद्यानमें, चतुर्थकालमें तीन वर्ष साढे आठ मास वाकी रह जानेपर कार्तिकी अमावस्याके प्रभातकालीन सन्ध्याके समय, योगका निरोध करके कर्मोका नाश करके मुक्तिको प्राप्त हुए। चारों प्रकारके देवताओंने आकर उनकी, पूजा की और दीपक जलाये। उस समय उन दीपकोंके प्रकाशसे पावानगरीका आकाश प्रदीपित हो रहा था। उसी समयसे भक्त लोग जिनेश्वरकी पूजा करनेके लिये भारतवर्षमे प्रति वर्ष उनके निर्वाण. दिवसके उपलक्षमे दीपावली मनाते है।" जैनधर्मकी आजकी स्थितिको देखते हुए कोई इस बातपर विश्वास नहीं कर सकता कि महावीर निर्वाणके उपलक्ष्यमे दीपावली मनाई जा सकती है। किन्तु उस समयके प्रसिद्ध प्रसिद्ध राजघरानोके साथ । उल्लेखोसे इतना ही पता चलता है कि कार्तिकम रात्रिके समय कोई उत्त मनाया जाता रहा है। किन्तु वह क्यो मनाया जाता है तया उसका रूप क्या था, इसका पता नही चलता। ले० । १. "जिनेन्द्रवीरोऽपि विवोध्य सतत समततो भव्यसमूहसतति । प्रपद्य पावानगरों गरीयसी मनोहरोद्यानवने तदीयके ॥१५॥ चतुर्थकालेऽर्घचतुर्यमासकै विहीनताविश्चतुरन्दशेपके। सकातिके स्वातिषु कृष्णभूतसुप्रभातसन्व्यासमये स्वभावतः ॥१॥ । अघातिकर्माणि निरुद्धयोगको विधूय धाती धनवद्धिवधन । विवन्धनस्थानमवाप शकरो निरन्तरायोख्सुखानुवन्यम् ॥१७॥ ज्वलत्प्रदीपालिकया प्रवृद्धया सुरासुर दीपितया प्रदीप्तया। तदा म पावानगरी समतत प्रदीपिताकाशतला प्रकाशते ॥१९॥ ततस्तु लोक प्रतिवर्षमादरात् प्रसिद्धदीपालिकयात्र भारते। समुद्यत पूजयितुं जिनेश्वर जिनेन्द्रनिर्वाण विभूतिभत्तिमाक् ॥२०॥
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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