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________________ जैनधर्म महाराज कुमारपाल चित्तोडके फिलेसे प्राप्त शिलालेखमें लिखा है कि महाराज कुमारपालने अपने प्रबल पराक्रमसे सब शत्रुओको निर्मद कर दिया। उनको आज्ञाको पृथ्वीके सव राजाओने मस्तक पर चढाया। उसने गाकमकि राजाको अपने चरणोमें नमाया। वह स्वयं अस्त्र लेकर सवालक्ष दश (मारवाड ) पर्यन्त चढा और सब गढपतियोंको नमाया। सालपुरको भी वगर्म किया। महाराज कुमारपाल गुजरातके राजा थे। गंगनरेश मारसिंह ___ गंगनरेश मारसिंह भी जैसा धर्मात्मा था वैसा ही शूरवीर मा था। इसने कृष्णराज तृतीयके भयानक शत्रु अल्लाहका मान-मन किया। और कृष्णराजको सेनाकी रक्षा की। किरातोको भगाया। बज्जालको हराया। वनवासीके अधिकारीको पकड़कर उसपर आधकार किया। मथुराके राजामोसे विनय प्राप्त की। नौलम्ब राजामौका नप्ट किया । चालुक्य राजकुमार राजादित्यको हराया। तापी, मान्यखेड, गोनूर, वनवासी आदिकी लड़ाइयोंको जीता । इसकी गगचूडामणि, नोलम्बातक, माण्डलीक त्रिनेत्र, गगविद्याधर, गगवन आदि अनेक उपाधियाँ थी। समरकेसरी चामुण्डराय यह राजा राचमल्लके सेनापति थे। राजा इनकी वीरतासे वा प्रसन्न था। जव इन्होने वज्जलदेवको हराया तो समरघुरल्वरकी पदवी, पाई । नोलम्व युद्धम सफल होनेपर वीरमार्तण्ड कहलाय। उच्छंगक किलेको जीत लेनेपर रणरायसिंह हए। वागपुरके किलेमें त्रिभुवनवीरको मार डालनेपर वैरी-कुल-काल-दण्डकी उपाधि पाई। गंगभट्टका युद्धमे मारनेपर समरपरशुराम हुए। सत्यवादी होनेसे सत्य युधिष्ठिर कहे जाते थे।
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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