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________________ ३०२ जैनधर्म धनराज जव १७८७ ई० में अजमेरके महाराजा विजयसिंहने अजनेरको मरहट्ठों से पुन. जीत लिया तो धनराज सिंघोको, जो ओसवाल जैन थे, अजमेरका गवर्नर बनाया। चार सालके बाद मरहठोने पुन मारवाड़पर आक्रमण किया । इसी बीच मरहठा सरदारने बज मेरको भी चारों मोरसे घेर लिया। धनराजने अपनी छोटी-सी सेनासे शत्रुका सामना बड़ी वीरतासे किया किन्तु मरहठोंकी शक्ति देखकर विजयसिंहने धनराजको आज्ञा दी कि अजमेर मरहठो सौपकर जोधपुर चले आओ। घनराज न तो अपमानित होकर शत्रुको देश सोपना चाहता था और न स्वामीकी आज्ञाका उल्लंघन करना चाहता था। उसने होरेकी कनी खाकर प्राण त्याग दिये और मरते समय चिल्लाया - महाराजसे कह देना मेने उनकी आज्ञाका पाल्न किया। मेरे जीतेजी मरहठे अजमेर में प्रवेश नही कर सकते थे । जनरल इन्द्रराज जैन ओसवालोंमें इन्द्रराज सबसे बड़े जनरल हुए है । इन्होंने बीकानेरके राजाको हराया और जयपुर के राजाका मान भंग किया। सन् १८१५ में इनका स्वर्गवास जोधपुरमें हुआ । वस्तुपाल तेजपाल जैन मंत्रियों और सेनापतियोंमें वस्तुपाल तेजपालका उल्लेखनीय है । ये दोनों भाई राजनीतिक पण्डित, तलवारके घनी शिल्पकला के प्रेमी और जैन के अनन्य भक्त थे। ये पोरवाड थे और गुजरातके वघेलवंशी राजा वीरधवलके मंत्री थे । देवगिरिके यादववंशी राजा सिंहमने जब गुजरातपर आर किया तो इन वीरोने उनसे युद्ध करके विजय प्राप्त की । इसी प्रका संग्राममहने सम्नातपर हमला किया तो वस्तुपाल वहाँका गवर्न था। घमासान युद्ध हुवा और संगामसिंहको युद्ध क्षेत्रसे भागना पडा !
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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