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________________ सामाजिक रूप २७५ के टुकडे करके उनके आसन बना डाले। इसपर शिवभूति खूब क्रोधित हुआ और उसने प्रकट किया कि महावीरकी तरह में भी वस्त्र नही पहरूंगा । ऐसा कह उसने सव वस्त्रोंका त्याग कर दिया। उसकी वहिनने भी उसका अनुकरण किया। स्त्रियोंको नग्न न रहना चाहिये ऐसा मत शिवभूतिने तव जाहिर किया । और यह भी जाहिर किया कि स्त्री मोक्ष नहीं जा सकती । इस तरह महावीर निर्वाणके ६०१ वर्ष वाद बोटिकोंकी उत्पत्ति हुई और उनमेंसे दिगम्बर सम्प्रदाय उत्पन्न हुआ।" - दिगम्बर सम्प्रदायकी मान्यताके अनुसार भी श्वेताम्बर सम्प्रदायकी उत्पत्ति विक्रम राजाको मृत्युके १३६ वे वर्षमें हुई है। दोनोमें सिर्फ ३ वर्षका अन्तर होनेसे दोनोंकी उत्पत्तिका काल तो लगभग एक ही ठहरता है। रह जाती है कथाकी बात । सो महावीरके द्वारा प्रतिपादित और आचरित दिगम्बरधर्म उनके वाद एक दम लुप्त हो जाय और फिर एक क्रुद्ध साधुके नंगे हो जाने मात्रसे चल पडे और इतने विस्तृत और स्थायी रूपमें फैल जाय। यह सव कल्पनाकी वस्तु हो सकती है कन्तु वास्तविकता इससे दूर है । जो श्वेताम्बर विद्वान इस कथाको ठीक समझते है वे भी इस बातको मानते है कि पहले साधु नग्न रहते थे फिर धीरे-धीरे परिग्रह वढा। ____उदाहरणके लिए श्वेताम्बर मुनि कल्याण विजयजीके शब्द ही हम यहाँ उद्धृत करते है "आर्यरक्षितके स्वर्गवासके वाद धीरे-धीरे साधुओंका निवास वस्तियोमे होने लगा और इसके साथ ही नग्नताका भी अन्त होता गया। पहले वस्तीमें जाते समय बहुधा कटिबन्धका उपयोग होता था। वह वस्तीमे वसनेके वाद निरन्तर होने लगा। धीरे धीरे कटि वस्त्रका भी आकार प्रकार वदलता गया। पहले मात्र शरीरका गुह्य अंग ही ढकनेका विशष ख्याल रहता था पर वादमें सम्पूर्ण नग्नता ढाँक लेनेकी जरूरत समझी गयी और इसके लिए वस्त्रका आकार प्रकार भी बदलना पड़ा।"
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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