SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ર૭૪ जैनधर्म वतलाया गया है कि 'जम्बू स्वामी के निर्वाणके बाद निम्नलिखित दस बाते विच्छिन्न हो गयी है-मन पर्ययज्ञान, परमावधिज्ञान, पुलाकलन्धि, हारक शरीर, क्षपकणि, उपशमश्रेणी, जिनकल्प, तीन सयम, केवल नि और दसवां सिद्धिगमन ।' इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है क जम्बू स्वामीके बाद जिनकल्पका लोप हुआ बतलाकर अवसे जिन-. ल्पके आचरणको बन्द करना और उस प्रकारका आचरण करनेवालोंका' त्सिाह या वैराग्य भंग करना, इसके सिवा इस उल्लेखमे अन्य कोई द्देश मुझे मालूम नहीं देता।xx जम्ब स्वामी निर्वाणके वाद जो जनकल्प विच्छेद होनेका वज्रलेप किया गया है और उसकी आचरणा करनेवालोको जिनाज्ञा वाहर समझनेकी जो स्वार्थी एवं एकतरफी दम्मी मकीका दिढोरा पीटा गया है बस इसीमें श्वेताम्बरता और दिगम्वरताके विषवृक्षको जड समायी हुई है।" ___ यद्यपि दिगम्बर सम्प्रदाय यह नहीं मानता कि बीचके २२ तीर्थदरोंने सचेल और अचेल धर्मका निरूपण किया था। वह तो सव तीर्थङ्करोंके द्वारा अचेल मार्गका ही प्रतिपादन होना मानता है । फिर भी पं० वचरदासजीके उक्त विवेचनसे संघभेदके मूलकारणपर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। श्वेताम्वर साहित्यमें दिगम्वरोकी उत्पत्तिके विषयमें एक कया मिलती है जिसका आशय इस प्रकार है-"रथवीरपुरमें शिवभूति नामका एक क्षत्रिय रहता था। उसने अपने राजाके लिए अनेक युद्ध जीते थे इसलिए राजा उसका खूब सन्मान करता था। इससे वह बडा घमण्डी हो गया था। एक वार शिवभति वहुत रात गये घर लोटा। माँ ने फटकारा मोर द्वार नहीं खोला । तव वह एक मठमें पहुंचा और साधु हो गया। जव राजाको इस वातकी खबर मिली तो उसने उसे एक बहुमुल्य वस्त्र भेट किया। आचार्यने उस वस्त्रको लोटा देनको । आज्ञा दी। किन्तु शिवभूतिने नहीं लौटाया। तव आचार्यने उस वस्त्र र १. जनसाहित्यमें विकार पृ० ८७-१०५॥
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy