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________________ २५८ जनधर्म मद्रास गवर्मेण्ट म्यूजियमसे "Tirupatti Kunram' नामक क मूल्यवान् ग्रन्थ श्री टी० एन० रामचन्द्रन द्वारा लिखित प्रकाशित आ है। इसमें प्रकाशित चित्रोसे दक्षिण भारतकी जैन चित्रकला द्धतिका अच्छा आभास मिलता है। इनमें से अधिकांश चित्र भगवान् हिषभदेव और महावीरकी जीवन घटनाओंपर प्रकाश डालते हैं। निसे उस समयके पहनाव नृत्यकला आदिका परिचय मिलता है। ताड़पत्रोंको सुरक्षित रखने के लिए काष्ठ-फलकोंका प्रयोग किया नाता था । अत. उनपर भी जनचित्र कलाके सुन्दर नमूने मिलते हैं। जैन चित्रकलाके सम्बन्धमे चित्रकलाके मान्य विद्वान् श्री एन० सी० महताने जो उद्गार प्रकट किये है वे उसपर प्रकाश डालनके लिए पर्याप्त होंगे। वे लिखते है-जन चित्रोंमें एक प्रकार की निर्मलता, फूर्ति और गतिवेग है, जिससे डा. आनन्दकुमार स्वामी जैसे रसिक वेद्वान् मुग्ध हो जाते है। इन चित्रोंकी परम्परा अजंता, एलोरा, . वाघ, और सितनवासलके भित्तिचित्रोंकी है। समकालीन सभ्यताक अध्ययनके लिए इन चित्रोंसे बहुत कुछ ज्ञानवृद्धि होती है। खासकर पोशाक, सामान्य उपयोगमें आने वाली चीजे आदिके सम्बन्धम अनेक वातें ज्ञात होती है।' मूर्तिकला जनधर्म निवृत्तिप्रधान धर्म है, अत. प्रारम्भसे लेकर आजतक उतके मूतिविधानमें प्राय. एकही रीतिके दर्शन होते है । ई० स० के आरम्भमें कुशान राज्यकालकी जो जन प्रतिमाएं मिलती है उनमें और सैकड़ों वर्प पीछेकी बनी जन मूर्तियोंमें वाह्य दृष्टिसे थोडा बहुत ही अन्तर है। प्रतिमाके लाक्षणिक अंग लगभग दो हजार वर्पतक एक ही रूपमें कायम रहे है। पद्मासन या खड़गासन मूतियोम लम्बा काल वीत जानेपर भी विशेष भेद नही पाया जाता। जैन तीर्थङ्करकी मूर्ति विरक्त, १ भारतीय पिमाला पृ० ३३॥
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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