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________________ २५९ जैन कला और पुरातत्त्व भी भारतीय चित्रकलाके इतिहासमे गौरवपूर्ण स्थान रखते हैं। इनकी रचना शैली अजंताके भित्तिचित्रोंसे बहुत मिलती जुलती है।। __यहाँ अव दीवारों और छत पर सिर्फ दो चार चित्र ही कुछ अच्छी हालतमे वचे है। इनकी विशेषता यह है कि बहुत थोडी किन्तु स्थिर और दृढ रेखाओमे अत्यन्त सुन्दर आकृतिया बडी होशियारीके साथ लिख दी गयी है जोसजीव सी जान पडती है। गुफामे समवसरणकी सुन्दर रचना: चित्रित है। सारी गुफा कमलोसे अलंकृत है। खम्भोपर नर्तकियोके चित्र हैं। वरामदेकी छतके मध्यभागमे पुष्करिणीका चित्र है। जलमे पशु-पक्षी, जलविहार कर रहे है। चित्रके दाहिनी ओरतीन मनुष्याकृतियाँ आकर्षक और सुन्दर है। गुफामे पर्यक मुद्रामें स्थित पुरुष प्रमाण अत्यन्त सुन्दर पाँच तीर्थकर मूर्तियाँ है जोमूर्ति-विधान कलाकी अपेक्षासे भी उल्लेखनीय है। वास्तवमें पल्लवकालीन चित्र भारतीय विद्वानोंके लिए अध्ययनकी वस्तु सितनवासलके वाद जैनधर्मसे सम्बद्ध चित्रकलाके उदाहरण दसवी ग्यारहवी शतीसे लगाकर पंद्रहवी शताब्दी तक मिलते है विद्वानोंका कहना है कि इस मध्यकालीन चित्रकलाके अवशेषोंके लिए: भारत जैन भण्डारोका आभारी है; क्योकि प्रथम तो इस कालमे प्राय एक हजार वर्ष तक जैनधर्म का प्रभाव भारतवर्षके एक बहुत बड़े मागम फैला हुआ था। दूसरे जैनोंने बहुत बड़ी संख्यामें धार्मिक ग्रन्थ ताड़ पत्रोंपर लिखवाये और चित्रित करवाये थे। वि० सं० ११५७ की चित्रित निशीथचूणिकी प्रति आज उपलब्ध है जो जैनाश्रित कलाम अति प्राचीन है। १५वी शतीके पूर्वकी जितनी भी कलात्मक चित्रकृतियाँ मिलती है वे केवल जैन अन्योंमें ही प्राप्य है। आज तक जो प्राचीन जैन साहित्य उपलब्ध हुआ है उसका बहु भाग ताडपत्रोपर लिखा हुआ मिला है। अत भारतीय पत्रकलाक विकास ताड़पत्रोंपर भी खूब हुआ है । मुनि जिनविजयजीका लिखना है कि चित्रकलाके इतिहास और अध्ययनकी दृष्टिसे ताड़पत्रकी ये सचित्र पुस्तकें बड़ी मूल्यवान् और आकर्षणीय वस्तु है।
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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