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________________ जैन साहित्य २५३ निक ग्रन्योके अवलोकनसे स्पष्ट हो जाती है। इनमें से पहला ग्रन्थ अकलंकदेवके लघीयस्त्रयका व्याख्यान है और दूसरा आचार्य माणिक्यनन्दिके परीक्षामुख नामक सूत्र ग्रन्थका। श्रवणवेलगोलाके शिलालेख नं० ४० (६४) मे इन्हें शब्दाम्भोरुहभास्कर और प्रथित तर्क ग्रन्थकार बतलाया है। इन्होने शाकटायन व्याकरणपर एक विस्तृत न्यास ग्रन्थ भी रचा था जिसका कुछ भाग उपलब्ध है । इनके गुरुका नाम पद्मनन्दि सैद्धान्तिक था। वादिराज (ई० स० ११वी शती) वादिराज तार्किक होकर भी उच्चकोटिके कवि थे। षट्तर्क षण्मुख, स्याद्वादविद्यापति और जगदेकमल्लवादी उनकी उपाधिया थी। नगर ताल्लुकाके शिलालेख नं० ३६ में बताया है कि वे सभाम अकलंक थे, प्रतिपादन करनेमें धर्मकीर्ति थे, बोलनेमे बृहस्पति । और न्यायशास्त्रमें अक्षपाद थे। उन्होंने अकलंकदेवके न्याय विनिश्चयपर विद्वत्तापूर्ण विवरण लिखा है जो लगभग बीस हजार श्लोक प्रमाण है। तथा शक सं० ६४७ (ई० सं० १०२५) म पार्श्वनाथचरित रचा जो बहुत ही सरस प्रौढ रचना है। अन्य भी कई अन्य और स्तोत्र इन्होने बनाये है। इनके गुरुका नाम मतिसागर था ___यह तो हुआ कुछ प्रसिद्ध दिगम्बर जैनाचार्योका परिचय अव कुछ श्वेताम्बर जैनाचार्योका परिचय दिया जाता है। आचार्योमें उमास्वामीकी उमास्वाति नामसे तथा । सिद्धसेनदिवाकर नामसे श्वेताम्वर सम्प्रदायमे भी बहुत तिष्ठ है। और वह इनको श्वेताम्बराचार्य रूपसेही मानता है। __नियुक्तिकार भद्रबाहु भद्रवाहु नामके दो आचार्य हो गये है। यह दूसरे भद्रव विक्रमकी छठी शतीमें हुए है। वे जातिसे ब्राह्मण थे । प्रसि ज्योतिषी वराहमिहिर इनका भाई था। इन्होंने आगमो । नियुक्तियोंकी रचना की तथा अन्य भी अनेक ग्रन्थ बनाये।
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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