SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४ जनधर्म मल्लवादी यह प्रवल तार्किक थे। आचार्य हेमचन्द्रने अपने व्याकरणमें लिखा है कि सब तार्किक मल्लवादीसे पीछे है। इनका बनाया हुआ नयचक्र ग्रन्थ बहुत महत्त्वपूर्ण है जिसका पूरा नाम द्वादशार नयचत्र है। मूल ग्रन्थ तो उपलब्ध नहीं है किन्तु उसकी सिंह क्षमाश्रमण कृत टीका मिलती है । आचार्य हरिभद्रने अपने 'अनेकान्त जयपताका प्रन्थमे इनका वादिमुख्य करके उल्लेख किया है, अतः इतना निश्चित है कि ये विक्रमकी आठवी शतीसे पहिले हुए है। जिनभद्रगणि (ई० ६-७वीं शती) जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण एक बहुत ही समर्थ और आगम-कुशल विद्वान थे। इनका विशेषावश्यक भाष्य नामका एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। उसीके कारण भाष्यकार नामसे इनकी ख्याति है। इस ग्रन्यम उन्होने सिद्धसेनके विचारोंका खण्डन भी किया है। विशेषणवती, आदि अन्य भी अनेक ग्रन्थ इनके रचे हुए है। आचार्य हेमचन्द्रने इन्हें उत्कृष्ट व्याख्याता बतलाया है। हरिभद्र (ई० ७००-७५०) हरिभद्रसूरि श्वेताम्बर सम्प्रदायके वहुमान्य विद्वान् हुए है। इन्होंने संस्कृत और प्राकृतमें अनेक ग्रन्थोकी रचना की है। इनके रचे हुए अन्योमें अनेकान्तवाद प्रवेश, अनेकान्त-जयपताका, ललितविस्तरा, पड्दर्शन समुच्चय, और समराइच्च कहा अति प्रसिद्ध है । अपने प्रकरण ग्रन्थोंमे इन्होने तत्कालीन साधुओंकी खरी आलोचना भी की है। अभयदेव (ई० ११वी शती) । यह प्रद्युम्नसूरिके शिष्य थे। इन्होने सिद्धसेनके सन्मति-तर्कपर बहुत ही विद्वत्तापूर्ण टीका लिखी है। इस टीकामें सैकड़ो दार्शनिक न्योका निचोड़ भरा हुआ है। संक्षेपमें दिगम्बर परम्परामें अकलंकव, विद्यानन्दि और प्रभाचन्दका जो स्थान है वही स्थान श्वेताम्बर
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy