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________________ [ १११ ] (४) -- प्रकुद्ध कात्यायन (अकृतबाद) (५) निम्मांठ नाथपुत (चातुर्याम संबर) (६) - संजय बेलडिपुत्र (अनिश्चितताबाद) (१) पूर्णकाश्यपः- उसका कहना था कि किसी ने कुछ किया, करबाया, काटा या कटवाया, तकलीफ दी या दिलवाई, शोक किया या करवाया, कष्ट सहा या दिया, डरा या दूसरे को डराया, प्राणी की हत्या की, चोरी की, डकैती की, घर लूट लिया, बटमारी की, परस्त्रीगमन किया, असत्य वचन कहा फिर भी उसको पाप नहीं लगता । तीक्ष्णधार के चक्र से भी अगर इस संसार के सब प्राणियों को मारकर ढेर लगा दे तो भी उसे पाप न लगेगा । गंगा नदी के उत्तर किनारे पर जाकर भी कोई दान दे या दिलवाए, यश करे या करवाए तो कुछ भी पुण्य नहीं होने का । दान, संयम, धर्म, सत्य भाषण इन सबों से पुण्य प्राप्ति नहीं होती। इसके बाद को अक्रियावाद कहा गया । 1 । (२) — दूसरे संघ का आचार्य मंखलि गोशाल था । कहीं-कहीं मस्करी का अर्थ 'पाणिनी' ने गृहत्यागी किया है। इससे ध्वनित होता है-साधु गोशाल । पाली में भी इस शब्द की व्याख्या करने का प्रयत्न किया गया है। वहां 'मक्खलि' का अर्थ किया गया है = मागिर । यह गोशाला में उत्पन्न हुआ । अतः गोशालक कहलाया । उसका कहना था कि प्राणी के अपवित्र होने में न कुछ हेतु है न कुछ कारण । बिना हेतु के और बिना कारण के ही प्राणी अपवित्र होते हैं प्राणी की शुद्धि के लिए भी कोई हेतु या कारण नहीं है। बिना हेतु कारण के ही प्राणी शुद्ध होते हैं। खुद अपनी या दूसरे की शक्ति से कुछ नहीं होता । बल, वीर्य, पुरुषाकार, पराक्रम ये कुछ नहीं है। सब प्राणी बलहीन और निवर्य हैं। जो नियति बल से होने वाला है वह अवश्य होकर रहेगा और जो नहीं होने का है वह लाख प्रयत्न करने पर भी नहीं होता । समस्त प्राणी नियति (भाग्य), संगति और स्वभाव के द्वारा परिणत होते हैं। अक्लमंद और मूर्ख सबके दुःखों का नाश ८० लाख के महाकल्पों के फेर में होकर जाने के बाद ही होता है । इस वाद को किसी ने संसार शुद्धिवाद कहा तो किसी ने नियतिवाद । (३) तीसरे संघ का प्रमुख अजितकेशकम्बली था । यह मनुष्यों केशों का कम्बल धारण करता था। अतः लगता है 'केशकम्बली' इस अपनाम से विश्रुत हुआ । इसका अभिमत था - दान, यश तथा होम यह सब कुछ नहीं है, भने बुरे कर्मों का फल नहीं मिलता, न इहलोक है न परलोक ;
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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