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________________ " ..... . ___ . जैन-मक्तिका स्वरूप परमात्मा बन जाता है। परमानन्द स्वभाववाला भगवान् जिनेन्द्र ही परमात्मा है, और वह ही आत्मा है। अतः जिनेन्द्रमें अनुराग करना अपनी आत्मामें ही प्रेम करना है। आत्म-प्रेमका अर्थ है आत्म-सिद्धि, जिसे मोक्ष कहते हैं । जिनेन्द्रका अनुराग भी मोक्ष देता है । आचार्य पूज्यपादने, आठ कर्मोका नाश कर, आत्म-स्वभावको साधनेवाले भगवान् सिद्धसे मोक्षको प्रार्थना की है। उन्होंने ही यह भी लिखा है कि भगवान् जिनेन्द्रका मुख देखनेसे ही मुक्तिरूपी लक्ष्मीका मुख दिखायी देता है, अन्यथा नहीं। इसके अतिरिक्त वह ही राग 'बन्ध' का कारण है, जो सांसारिक स्वार्थसे प्रेरित होकर किया गया हो। निष्काम अनुरागमें कर्मोको बांधनेको शक्ति नहीं होती। वीतरागमें किया गया अनुराग निष्काम ही है, उसमें किसी प्रकारको कामना सन्निहित नहीं है । 'वीतरागता'पर रोझकर ही भक्तने वीतरागीमें अनुराग किया है । इसके उपलक्ष्यमें यदि वीतरागो भगवान् अपने भक्तमें अनुराग करने लगें, तो भक्तका रोझना ही समाप्त हो जायेगा । वह भगवान्से अपने ऊपर न दया चाहता है, न अनुग्रह और न प्रेम । जैन-भक्तिका ऐसा निष्काम अनुराग, गीताके अतिरिक्त अन्यत्र देखनेको नहीं मिलता। १. एहु जु अप्पा सो परमप्पा, कम्म-विसेसे जायउ जप्पा। ___ जामइँ जाणइ अप्पे अप्पा, तामह सो जि देउ परमप्पा ॥ देखिए वही, १७४वाँ दोहा, पृ० ३१७ ॥ २. जो जिणु केवल-णाणमउ परमाणंद-सहाउ। सो परमप्पउ परम-परु सो जिय अप्प-सहाउ ॥ देखिए वही, १९७वाँ दोहा, पृ० ३३५ । ३. सिद्धानुद्भूतकर्मप्रकृतिसमुदयान्साधितात्मस्वभावान्, वन्दे सिविप्रसिद्ध्यैतदनुपमगुणप्रग्रहाकृष्टितुष्टः ॥ आचार्य पूज्यपाद, श्रीसिद्धमक्ति : दशमक्ति : श्रीप्रमाचन्द्राचार्यकृत संस्कृत टीका युक्त, पं० जिनदास पार्श्वनाथ, मराठी भाषा अनूदित, तात्या गोपाल शेटे सोलापुर, प्रकाशित १९२१ ईसवी, पहला पद्य, पृष्ट २७ । ४. श्रीमुखालोकनादेव श्रीमुखालोकनं भवेत् । पालोकनविहीनस्य तत्सुखावाप्तयः कुतः ॥ ४ ॥ भाचार्य पूज्यपाद, ईर्यापथशुद्धि :, श्रीदशभक्त्यादिसंग्रह : श्रीसिद्धसेन गोयलीय सम्पादित, अखिलविश्वजैनमिशन, सलाल [ साबरकांठा ], गुजरात, वीरनिर्वाण सं० २४८१, पृष्ठ ७६ ।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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