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________________ HIROINNARMPARAN जैन-भक्तिकाम्यकी भूमि साथ-साथ सरस्वती और पद्मावतीकी भी मूर्तियाँ हैं।' सिरोही राज्यमें अजरी स्थानपर भगवान् महावीरके मन्दिर में सरस्वती देवीको भी मूर्ति विराजमान है। इसके सिंहासनपर वि. सं० १२१२ का एक शिलालेख खुदा हुआ है। देवगढ़के खण्डहरों में से एक जिन-मन्दिरके बरामदेमें चतुर्भुजो सरस्वतीकी मूर्ति अवस्थित है, जो कलापूर्ण और चित्ताकर्षक है। भक्तिके उद्धरण पश्येत् स्वां तनुमिन्दुमण्डलगतां त्वां चामितो मण्डितां यो ब्रह्माण्डकरण्डपिण्डितसुधाडिण्डीरपिण्डैरिव । स्वच्छन्दोद्गतगप्रपद्यलहरीलीलाविलासामृतैः सानन्दास्तमुपाचरन्ति कवयश्चन्द्रं चकोरा इव ॥ ७ ॥ सर्वाचारविचारिणी प्रतरिणी नौर्वाग्भवाब्धौ नृणां बीणावेणुवरक्वणातिसुभगा दुःखाद्रिविद्रावणी । सा वाणी प्रवणा महागुणगणा न्यायप्रवीणाऽमलं शेते यस्तरणी रणीषु निपुणा जैनी पुनातु ध्रुवम् ॥ ४ ॥ द्रव्यमावतिमिरापनोदिनी तावकीनवदनेन्दुचन्द्रिकाम् । यस्य लोचनचकोरकद्वयी पीयते भुवि स एव पुण्यमाक ॥ ५ ॥ विभ्रदङ्गकमिदं त्वदर्षितस्नेहमन्थरहशा तरङ्गितम् । वर्णमानवदनाक्षमोऽप्यहं स्वं कृतार्थमवयामि निश्चितम् ॥ ६ ॥ AMARTERMEN-NEINDIMORARS amASEV AAAAD LUILJILITILIUI JILLULAILAAAAA 9. Annual Report of the Archaeological Survey of Mysore, 1918, Banglore 1919, p. 6. 2. Sitaram, History of Sirohi Raj from the earliest times to the present day, Allahabad, 1920, p. 45 ३. प्रो० ज्योतिप्रसाद जैन, देवगढ़ और उसका कलावैभवः जैन सिद्धान्त . भास्कर : भाग २२, किरण १, पृ० १६।। ४. बप्पमहसूरि, सरस्वती-कल्प : भैरवपभावती-कल्प : अहमदाबाद, परिशिष्ट १२, पृष्ठ ६९ । ... ५.. साध्वी शिवार्या, सिद्धसारस्वतस्तव : भैरवपद्मावती-कल्प : महमदाबाद, परिशिष्ट १३, पृ० ७९ । ६. जिनप्रभसूरि, श्रीशारदास्तवनम् : भैरवपनावती-कल्प : अहमदाबाद, परिशिष्ट १४, पृ० ८१ ।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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